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कमजोर हड्डियों से लेकर ग्राफिक्स डिजाइनर बनने तक का सफर: साईं का कलरफुल ट्रांसफॉर्मेशन
भंगुर हड्डी रोग (Osteogenesis Imperfecta) के साथ जन्मे साई (Sai) को अब तक 50 से ज्यादा फ्रैक्चर हो चुके हैं, लेकिन ये उनके मनोबल को नहीं तोड़ सके. भंगुर हड्डी रोग (Osteogenesis Imperfecta) जिसे ब्रिटल बोन डिजीज भी कहते हैं, एक आजीवन आनुवंशिक विकार (Genetic Disorders) है जिसमें हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि ये टूटने लगती हैं
नई दिल्ली: जीवन में आगे बढ़ने के लिए उसके पास केवल एक उंगली ही थी. उनके शरीर का बाकी हिस्सा काम नहीं कर रहा था.
इन चुनौतियों के बावजूद अपनी इच्छाशक्ति के दम पर एक दिन वो ग्राफिक डिजाइनर बन गए.
दिव्यांग लोगों को सशक्त बनाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने वाले साई कौस्तुव (Sai Kaustuv) कहते हैं,
“एक दोस्त के साथ हुई बातचीत ने उनकी जिंदगी बदल दी. दोस्त के प्रोत्साहित करने पर मैंने ग्राफिक डिजाइन में डिप्लोमा किया और अपने बेरंग जीवन में रंग भर दिया.”
आस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा के साथ जन्मे साई अब तक 50 से ज्यादा फ्रैक्चर का इलाज करा चुके हैं. वह महज साढ़े तीन महीने के थे जब उसके दाहिने हाथ में पहला फ्रैक्चर हुआ और फिर उसका इलाज किया गया. लेकिन ये तो उनके मुश्किल सफर की सिर्फ शुरुआत थी.
“मेरा परिवार सदमे में था. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि हाल ही में पैदा हुए बच्चे का हाथ कैसे फ्रैक्चर हो सकता है? एक साल के अंदर मुझे तीन फ्रैक्चर हुए. मेरे माता-पिता इस बीमारी का इलाज कराने के लिए मुझे कोलकाता और बेंगलुरु ले गए.”
इस डिसऑर्डर के चलते साईं को अपना पहला प्यार कथक छोड़ना पड़ा.
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वह पिछले 20 सालों से भी ज्यादा समय से व्हीलचेयर पर हैं.
33 साल की उम्र में, उन्होंने कई तरह के करियर में हाथ आजमाया. वह आज एक सिंगर, कंपोजर, हैप्पीनेस कोच और मोटिवेशनल स्पीकर हैं.
वे कहते हैं,
“हम (दिव्यांग लोग) न केवल स्पेशल हैं बल्कि हम लिमिटेड एडिशन भी हैं.”
साई को लंदन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली है. वह भारत के पहले डिसेब्लड सर्टिफाइड हैप्पीनेस कोच हैं. और फिलहाल MBA कर रहे हैं.
वह कहते हैं,
“आप किसी भी तरह की विपरीत परिस्थिति से गुजर सकते हैं, लेकिन अगर आप में अपनी परिस्थितियों को बदलने का साहस और दृढ़ संकल्प है, तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.”
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