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दो दशकों तक की चुप्पी से लेकर कम्युनिकेशन में करियर बनाने तक का सफर

वह पहले 25 सालों तक बोल नहीं सकते थे. और आज एक एक्टर, लेखक और RJ के तौर पर उनका काम बोलता है. हम बात कर रहे हैं कोलकाता के स्टीफन हॉकिंग (Stephen Hawking) सयोमदेब मुखर्जी (Sayomdeb Mukherjee) की

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सायोमदेब मुखर्जी को 'वन लिटिल फिंगर - एबिलिटी इन डिसेबिलिटी' में उनके रोल के लिए मिला बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड

नई दिल्ली: वह अपनी जीभ (tongue) से कीबोर्ड चलाते थे. वह अपनी जीभ और इशारों की मदद से लोगों से बातचीत करते थे. उनके आंख झपकाने का मतलब ‘हां’ होता और एक खास तरह की आवाज का मतलब ‘नहीं’ होता था.

सयोमदेब मुखर्जी याद करते हुए कहते हैं,

“प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग ने जिस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया था मैंने भी उसी का इस्तेमाल किया. यह सॉफ्टवेयर टंग स्विच (tongue switch) में बनाया गया था. एक कंप्यूटर और एक्सेसेबल कीबोर्ड (keyboard) ने मुझे साक्षर बनाने में मदद की.”

सयोमदेब मुखर्जी एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार (rare genetic disorder) के साथ पैदा हुए थे. जिसकी वजह से वो बोल नहीं सकते थे. इस डिसऑर्डर का वैज्ञानिक नाम डोपामाइन-रेस्पॉन्सिव डिस्टोनिया (Dopamine-Responsive Dystonia) है. वह अपने शुरुआती 25 सालों तक बोल नहीं सके. लेकिन यह कमी भी उन्हें सीखने और खुद को साक्षर बनाने से नहीं रोक पाई.

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उनके पिता जो पेशे से एक डॉक्टर थे, ने उन्हें जीव विज्ञान, भौतिकी, शरीर विज्ञान और शरीर रचना विज्ञान के बारे में पढ़ाया. वहीं उनके चाचा ने ग्रीक पौराणिक कथाओं के बारे में उन्हें शिक्षा दी.

सायोमदेब कहते हैं,

“मेरे माता-पिता ने यह तय किया कि मैं ट्रैवल करूं. उनका मानना था कि ट्रैवल किए बिना, मैं अपने देश को नहीं जान पाऊंगा.”

वह कम्युनिकेट करने के लिए डिक्टेशन सॉफ्टवेयर ड्रैगन नेचुरली स्पीकिंग और माइक्रोसॉफ्ट के बने ‘रीड अलाउड’ और ‘इमर्सिव रीडर’ का भी इस्तेमाल करते हैं.

उन्होंने दो किताबें लिखी हैं – ‘मेमोयर्स ऑफ टाइम’, जो 40 शॉर्ट स्टोरी का एक कलेक्शन है और ’52 स्टेप्स’, जिसमें रेडियो जॉकी के तौर पर उनके सफर के बारे में बताया गया है. उन्हें RJ डेन के नाम से जाना जाने लगा. ‘वन लिटिल फिंगर – एबिलिटी इन डिसेबिलिटी’ में उनके रोल के लिए उन्हें सिनसिनाटी फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला.

वह दिव्यांग लोगों की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए बेंगलुरु बेस्ड एक नॉन प्रॉफिटेबल ऑर्गनाइजेशन एनएबल इंडिया (EnAble India) के साथ काम कर रहे हैं. इंटरनेशनल प्रोजेक्ट के प्रमुख के तौर पर, डेन दिव्यांग लोगों के लिए सहायक समाधानों (assistive solutions) की देखरेख करते हैं.

वह कहते हैं,

“टेक्नोलॉजी और सॉल्यूशंस के जरिए स्वतंत्र रूप से काम कर पाने में सक्षम होना और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर डिसेबिलिटी इकोसिस्टम के बारे में बात करना ही मुझे समर्थ बनाता है.”

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