ताज़ातरीन ख़बरें
दिव्यांग लोगों पर चुटकुले बनाना फनी नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने क्रिएटर्स से गलत जानकारी और दिव्यांगता के बारे में रूढ़िवादी नजरिये से हटकर मेडिकल कंडीशन का सही चित्रण करने का आग्रह किया
नई दिल्ली: अल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति भुलक्कड़ बाप है, सुनने में अक्षम व्यक्ति साउंडप्रूफ सिस्टम है और बोलने में अक्षम व्यक्ति अटकी हुई कैसेट है.
सालों से फिल्मों में दिव्यांग लोगों पर चुटकुले बनाए जाते रहे हैं. अब, कार्यकर्ता निपुण मल्होत्रा इस बात को लेकर आवाज उठा रहे हैं, ताकि आगे से ऐसा न हो.
पिछली सर्दियों में जब निपुण ने फिल्म आंख मिचौली देखी, तो वह फिल्म में शुरू से अंत तक दिव्यांग व्यक्तियों का मजाक बनाए जाने से निराश हुए.
वे कहते हैं,
“फिल्म का सार यह था कि शादी करने के लिए आपको अपनी दिव्यांगता को छिपाने की जरूरत है.”
इसे भी पढ़ें: डॉक्टरों ने कहा था उनकी जिंदगी एक ‘लकड़ी की गुड़िया’ जैसी होगी, लेकिन…
निराश होकर, निपमैन फाउंडेशन के संस्थापक निपुण ने इसके खिलाफ पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जुलाई में वह केस जीत गए और सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए विजुअल मीडिया में दिव्यांग व्यक्तियों (पर्सन विद डिसेबिलिटी) के चित्रण को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए.
Grateful to the Supreme Court of India for creating guidelines on portrayal of Persons with Disabilities in visual media, following my petition against @SonyPicsIndia for lampooning PwDs in 'Aankh Micholi.'
Happy about the distinction made in the judgement between “disability… pic.twitter.com/UC9YMD8EpN— Nipun Malhotra (@nipunmalhotra) July 8, 2024
कोर्ट ने डिसेबिलिटी और डिसेबिलिंग ह्यूमर के बीच अंतर किया है. देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा,
“हमें ‘डिसेबिलिंग ह्यूमर’ (अक्षम हास्य) में फर्क समझना चाहिए, जो दिव्यांग व्यक्तियों को नीचा दिखाता है और ‘डिसेबिलिटी ह्यूमर’ को अलग करना होगा, जो दिव्यांगता के बारे में पारंपरिक ज्ञान को चुनौती देता है. डिसेबिलिटी ह्यूमर दिव्यांगता को बेहतर ढंग से समझने और समझाने का प्रयास करता है, जबकि ‘डिसेलिलिंग ह्यूमर’ दिव्यांग लोगों को नीचा दिखाता है. गरिमा और दिव्यांग व्यक्तियों के बारे में रूढ़िवादिता पर उनके प्रभाव के लिहाज से दोनों को एक तरह नहीं देखा जा सकता.”
पीठ ने कहा कि “cripple” (पंगु) और “spastic” (अतिपेशीतानता) जैसे शब्दों ने सामाजिक धारणाओं का “अवमूल्यन” किया है. पीठ ने रचनाकारों से गलत जानकारी और रूढ़िवादी दृष्टिकोण से बचने के लिए मेडिकल कंडीशन के सही चित्रण पर ध्यान देने का आग्रह किया.
खुद व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले निपुण का मानना है कि एक फिल्म या तो किसी राय को खारिज कर सकती है या उसे मजबूत कर सकती है, पर ज्यादातर फिल्में फायदे से ज्यादा नुकसान ही करती हैं.
वह कहते हैं,
“मशहूर फिल्म शोले के एक दृश्य में हाथ काटने और किसी को दिव्यांग बना देने की सजा को मौत से भी बदतर कहा गया है.”
इसे भी पढ़ें: दिव्यांगता की बेड़ियां तोड़कर ‘खुशहाल शादी’ की नई परिभाषा गढ़ रहा है ये कपल