टिफनी बरार ने साबित कर दिया है कि दृष्टिहीनता कोई बाधा नहीं है और इसे साबित करने के लिए वह दृष्टिबाधित लोगों को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनने में मदद करने के मिशन पर हैं
प्रेरक कहानियां

दृष्टिबाधित लोगों को सशक्त बनाने के मिशन पर अधिवक्ता टिफनी बरार

दिव्यांग लोगों के अधिकारों की वकालत करने वाली टिफनी बरार का लक्ष्य देख न पाने वाले लोगों को सशक्त बनाना है. उनके अथक प्रयासों की बदौलत उनके फाउंडेशन ज्योतिर्गमय फाउंडेशन ने लोगों के जीवन में बदलाव लाकर अधिक समावेशी भारत की ओर अग्रसर किया है

द्वारा: सैयद मोहम्मद अफनान | एडिट: ऋतु वर्षा | December 28, 2023 Read In English

नई दिल्ली: “हर कोई अपने आप में महत्वपूर्ण है. इस बात के अहसास के लिए हमें बस थोड़े से सहारे की जरूरत होती है.” दिव्‍यांगजन के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित एक मोबाइल ब्लाइंड स्कूल, ज्योतिर्गमय फाउंडेशन की संस्थापक, टिफनी बरार का कुछ ऐसा ही मानना है. टिफनी बरार ने साबित कर दिया है कि दृष्टिहीनता कोई बाधा नहीं है और इसे साबित करने के लिए वह दृष्टिबाधित लोगों को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनने में मदद करने के मिशन पर हैं. इस मिशन के तहत ही ज्योतिर्गमय फाउंडेशन ने ऐसे लोगों के लिए पहली बार ‘इको लोकेशन कार्यशाला’ का आयोजन किया.

दिव्‍यांगता के कारण जीवन में झेले गए भेदभाव और एक तरह के सामाजिक बहिष्कार के अपने अनुभवों के चलते ही टिफनी के इस मिशन और इस कार्यशाला की शुरुआत हुई. उन्होंने अपने निजी अनुभव साझा करते हुए कहा,

“चूंकि मैंने अधिकतर दृष्टिहीन लोगों को आत्मविश्वास को कम किया जाता देखा. मेरा मतलब है, हमारे माता-पिता कहते थे, “नहीं-नहीं, उधर मत जाना, गिर जाओगी”। मुझे लगता है कि मैंने जो पहले शब्द सीखे वे थे ‘नहीं, नहीं, नहीं’, क्योंकि मैंने अपने माता-पिता को अकसर ऐसा ही कहते सुना.”

कार्यशाला के दौरान नेत्रहीन प्रतिभागियों ने सीखा कि अपनी परिवेश को समझने के लिए ध्वनि का इस्तेमाल किस तरह किया जाए. इस तकनीक को इको लोकेशन कहा जाता है. व्यस्त सड़कों और पार्कों में बिना किसी सहारे चलने के लिए छड़ी के साथ ही यह तकनीक भी काफी सहायक होती है. इस कौशल से दृष्टिबाधित लोगों को आवाज की गूंज से चीजों की पहचान करना सिखाया जाता है.

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यह कार्यशाला टिफनी बरार और उनकी टीम द्वारा प्रदान किए जाने वाले विविध और बहु-उपयोगी व्यावसायिक प्रशिक्षण का एक हिस्सा है. उन्होंने कहा,

“यहां हम दृष्टिबाधित व्यक्तियों को गतिशीलता अभिविन्यास, कंप्यूटर और एंड्रॉयड, आईफोन, विंडोज, लिनक्स, पारस्परिक कौशल और अंग्रेजी के उपयोग में प्रशिक्षित करते हैं. यह चार से छह महीने के प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम है.”

एक प्रतिभागी टोनी कुरेन ने कहा,

“मैंने इको लोकेशन के बारे में सुना था, तो मैंने सोचा कि मुझे इसे आजमाना चाहिए. तभी मुझे पता चला कि ज्योतिर्गमय फाउंडेशन इस कार्यशाला का आयोजन कर रहा है.। मैं इसे सीखना चाहता था, ताकि मैं और अधिक स्वतंत्र हो जाऊं, क्योंकि आजादी मेरे लिए सबसे कीमती चीज है.”

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हमारे देश में सड़कें, फुटपाथ, बाजार, कार्यालय, मॉल दृष्टिबाधित लोगों की पहुंच और गतिशीलता को ध्यान में रखकर डिज़ाइन नहीं किए गए हैं. कम या बिना दृष्टि वाले लोगों को सड़कों को पार करते समय या गड्ढों और खाई वाली सड़कों पर चलते समय गंभीर रूप से घायल होने का खतरा रहता है और इनसे लगन वाली चोटें हमेशा केवल शारीरिक नहीं होतीं। टिफनी बरार ने कहा,

“इस तरह की चीजें वास्तव में हमें मानसिक रूप से प्रभावित करती हैं जैसे कि क्या हमें सड़क पर चलना चाहिए या नहीं? अब, टोनी और मेरे जैसे लोग और कुछ अन्य लोग कह सकते हैं, “हम चलना जारी रखेंगे, हम चलते रहेंगे. हम जो भी करना होगा करेंगे, लेकिन हमें वहां पहुंचना होगा.” ऐसे कई लोग हैं जो अपने घर की चारदीवारी के अंदर कैद हैं. गतिशीलता क्‍या होती है, उन्‍हें पता ही नहीं.”

अपने घरों तक सीमित इन लोगों के लिए टिफनी और उनकी टीम सीखने और विकास के लिए एक उपयुक्त माहौल बनाना चाहती है. दृष्टिहीनता के साथ जी रहे लगभग 7 करोड़ भारतीयों के लिए ऐसी दुनिया को अपनाना एक कठिन काम है, जहां चीजें उनकी जरूरतों के मुताबिक नहीं बनी हैं. हालांकि, अकसर ये बाधाएँ केवल भौतिक नहीं होतीं. शारीरिक और व्यवहारिक दोनों ही तरह के बदलावों की जरूरत पर जोर देते हुए परिवर्तनों की आवश्यकता पर जोर देते हुए टिफनी बरार कहती हैं,

“बुनियादी ढांचे की कमी के अलावा अकसर नज़रिया भी एक बाधा बन जाता है. दृष्टिबाधित लोगों को भी अन्य लोगों की तरह ही उपयोगी और मूल्यवान होने का अहसास कराया जाना चाहिए. इसके लिए हमें बस थोड़े अनुकूलन की जरूरत है.”

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जन्मजात फाइटर टिफनी बरार ने खुद को उनकी दिव्‍यांगता के आधार पर पहचाने जाने या उसके दायरे में सीमित रहने से इनकार कर दिया. ज्योतिर्गमय फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने अनगिनत नेत्रहीन लोगों को प्रशिक्षित और सशक्त बनाने में मदद की है, जिसके लिए उन्हें पुरस्कार, प्रशंसा और काफी सामाजिक सराहना भी मिली है.

टिफनी बरार भारत में सभी दृष्टिहीन लोगों के लिए समान स्तर की स्वतंत्रता और आत्म-विश्वास चाहती हैं. यह कार्यशाला तो बस इसकी शुरुआत है. संवेदनशीलता और विचार के साथ इसी तरह निरंतर आगे बढ़ने से हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी जगहें वास्तव में दृष्टिहीन लोगों के लिए खुल जाएंगी.

इस पहल के बारे में

समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्‍यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.

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