गौरव खन्ना भारतीय पैरा बैडमिंटन टीम के हेड कोच हैं
प्रेरक कहानियां

भारत के पैरा-बैडमिंटन चैंपियनों के ‘द्रोणाचार्य’

गौरव खन्ना ने पैरा शटलर्स (Para shuttlers) को वर्ल्ड चैंपियनशिप गोल्ड सहित 972 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीतने में मदद की है

द्वारा: आस्था आहूजा | एडिट: श्रुति कोहली | July 31, 2024 Read In English

नई दिल्ली: भारतीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ियों को अपना द्रोण मिल गया है. जिन्हें गौरव खन्ना कहते हैं. वे उनके पास उम्मीद लेकर जाते हैं और चैंपियन बनकर वापस लौटते हैं.

गौरव भारतीय पैरा बैडमिंटन टीम के हेड कोच हैं.

अब तक, उन्होंने लगभग एक हजार शटलर्स (shuttlers) को अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में पदक दिलाने में मदद की है. इसमें वर्ल्ड चैंपियनशिप के गोल्ड मेडल भी शामिल हैं.

गौरव की खुद की कहानी भी बहुत प्रेरक है.

उनके साधारण बैकग्राउंड की वजह से स्कूल में उन्हें बहुत परेशान किया जाता था. इसलिए फिर उन्होंने भी दबंगों से दोस्ती कर ली. लेकिन, वह इसके लिए तैयार नहीं थे, इसलिए एक बार दो गुटों के बीच झड़प होने के बाद उन्होंने खुद को ही गिरफ्तार करवा लिया. उस समय वो बस 15 साल के थे.

मुश्किल हालातों से बाहर निकलने में बैडमिंटन ही उनका सहारा बना.

उस घटना के तुरंत बाद उन्होंने बैडमिंटन की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी.

1998 में नेशनल डबल्स चैम्पियनशिप के दौरान घुटना मुड़ जाना उनके लिए एक झटका साबित हुआ.

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लेकिन वो कहते हैं ना,

”यह मायने नहीं रखता कि आप कितनी बार गिरते हैं, गिरकर आप कितनी बार फिर से खड़े होते हैं, यह मायने रखता है.”

रेलवे सुरक्षा बल के तहत उन्हें उत्तर प्रदेश के एक रेलवे स्टेशन पर पोस्टिंग मिली. वहां उनकी मुलाकात अनाथ बच्चों से हुई, जिनमें से कुछ बहरे थे. एक सरकारी अधिकारी के तौर पर, उन्हें वहां से उन बच्चों को हटाने का निर्देश दिया गया.

इसके बजाय उन्होंने बच्चों को सहारा देने का फैसला किया. बाद में, उन्होंने बच्चों को बैडमिंटन रैकेट लाकर दिए.

एक एक्सीडेंट में उनके दूसरे पैर में चोट लगने की वजह से भविष्य में बैडमिंटन कंपटीशन में भाग लेने के उनके सारे मौके हाथ से निकल गए. लेकिन उन्होंने हालात के आगे हार नहीं मानी और अपनी एकेडमी, द्रोण पैरालंपिक हाउस की शुरुआत की.

गौरव ने कहा,

“मैं डबल सर्जरी के बाद चुपचाप बैठ गया था. मैंने सोचा, चलो कुछ ऐसा करें और दुनिया को दिखा दें कि दिव्यांग लोग क्या कर सकते हैं.”

वह खेल प्रशिक्षकों के लिए भारत के सबसे बड़े खेल पुरस्कार द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले पैरा स्पोर्ट्स कोच हैं.

उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक के लिए भारतीय शटलरों को ट्रेनिंग दी. उनकी एकेडमी ने प्रमोद भगत (Pramod Bhagat), सुकांत कदम (Sukant Kadam) और पलक कोहली (Palak Kohli) जैसे चैंपियन तैयार किए हैं.

टोक्यो पैरालंपिक में भारतीय शटलरों की सफलता के पीछे उनका ही हाथ है.

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इस पहल के बारे में

समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्‍यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.

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