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माइंडसेट से लड़ना सबसे बड़ी चुनौती है: IAS इरा सिंघल

इरा को जन्म से ही किफोसिस (kyphosis) है जिसे अंग्रेजी में बोलचाल की भाषा में ‘हंचबैक’ और हिंदी में कूबड़ के तौर पर भी जाना जाता है. तकनीकी रूप से इसे हाइपरकीफोसिस स्कोलियोसिस (hyperkyphosis scoliosis) कहा जाता है, यह रीढ़ की हड्डी की एक स्थिति है जिसमें रीढ़ की हड्डी जरूरत से ज्यादा बाहर की ओर मुड़ जाती है

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साल: 2014
एग्जाम: UPSC
रैंक: ऑल इंडिया रैंक 1
नाम: इरा सिंघल

इस शानदार उपलब्धि से चार साल पहले, इरा (Ira) ने इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज (Indian Revenue Services) में नौकरी पाने के लिए पर्याप्त अंक हासिल किये थे. लेकिन दिव्‍यांगता की वजह से उनका अपॉइंटमेंट कैंसिल कर दिया गया.

इरा सिंघल (Ira Singhal) को जन्म से ही किफोसिस (kyphosis) है, जिसे अंग्रेजी में आम भाषा में हंचबैक या राउंडबैक और हिंदी में कूबड़ के तौर पर भी जाना जाता है. तकनीकी रूप से इसे हाइपर किफोसिस स्कोलियोसिस (Hyperkyphosis scoliosis) कहा जाता है, यह रीढ़ की हड्डी की एक स्थिति है, जिसमें रीढ़ की हड्डी जरूरत से ज्यादा बाहर की ओर मुड़ जाती है. इस कंडीशन की वजह से इरा के शरीर का 62 प्रतिशत हिस्सा दिव्‍यांग हो गया. इरा अपनी इस स्थिति की वजह से अपॉइंटमेंट कैंसिल हो जाने के बारे में बात करते हुए कहती हैं,

“यह मेरे लिए एक बहुत बड़ा झटका था, परीक्षा के सभी स्तरों को पास करने के बाद भी मुझे रिजेक्ट कर दिया गया! मुझे यह साबित करने के लिए अपने मेडिकल पेपर प्रोवाइड कराने पड़े कि मैं प्रशासनिक नौकरियों (administrative jobs) की जिम्मेदारी संभाल सकती हूं.”

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इस रिजेक्शन के बाद भी इरा ने हिम्मत नहीं हारी और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Central Administrative Tribunal – CAT) से इस मामले में कानूनी हस्तक्षेप करने की मांग की. कोर्ट ने इरा के पक्ष में ही अपना फैसला सुनाया.

आजकल इरा अरुणाचल प्रदेश के तिराप (Tirap) में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के तौर पर जिम्मेदारी संभाल रही हैं. वह कहती है,

“किसी मानसिकता (mindset) से लड़ना सबसे बड़ी चुनौती है!”

और इससे लड़ना शुरुआत से ही शुरू हो जाता है. स्कूल में बिताया, हर दिन उनके लिए एक मुश्किल इम्तिहान की तरह था. बाद में जब वो कॉलेज में आईं, तो उन्हें किसी भी सोसायटी या क्लब में हिस्सा लेने से रोका गया. ऐसा करने के पीछे यह कारण दिया गया कि लोग उनके फैसलों को गंभीरता से नहीं लेंगे. इरा ने अपनी बात को रखते हुए आगे कहा,

“लड़कों के साथ मेरा लगातार झगड़ा होता रहता था, वे सोचते थे कि दिव्यांग होने की वजह से ये लड़की कुछ भी बेहतर नहीं कर पाएगी. मेरे दोस्त अपने आस-पास ‘एक अजीब-सी दिखने वाली लड़की’ को लेकर सहज महसूस नहीं करते थे. दुनिया हमें समान अवसर पाने वाले व्यक्ति के रूप में न देखकर, लाचार और दया का पात्र मानने में ज्यादा सहज महसूस करती है.”

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“समाज में किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढना बहुत मुश्किल होता है जो हमारे जैसे लोगों को सिर्फ एक इंसान के रूप में देखता हो, न कि किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में जिस पर दया की जाए. आप जिस भी नए व्यक्ति से मिलेंगे, आपको उन्हें यह विश्वास दिलाना होगा कि आप भी एक मौके के हकदार हैं, चाहे वह शिक्षा में हो या फिर काम में. जब हम बदलाव लाने के लिए निकलते हैं, तो इसकी शुरुआत वहीं से होनी चाहिए, जहां से ये अंतर शुरू होता है, यानी स्कूलों से. स्कूलों को सुलभ और समावेशी बनाने की जरूरत है. स्कूल पहली जगह है जहां से माइंडसेट यानी मानसिकता बननी शुरू होती है और स्कूल ही वह जगह है, जहां हम इसे बदल सकते हैं.”

इरा के पास अपने सपनों को हासिल करने की इच्छा रखने वाले हर किसी व्यक्ति के लिए एक सुंदर संदेश है. इरा ने कहा,

“आपने अपनी इस स्थिति को जिया है किसी और ने नहीं, इसलिए दुनिया को खुद को परिभाषित (Define) करने का मौका न दें.”

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