39 साल की गीता ने 15 साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी. लेकिन उन्होंने दुनिया में अपना नाम कमाने की उम्मीद कभी नहीं छोड़ी. गीताज़ होम टू होम (Geetha's Home To Home) की फाउंडर गीता की सफलता उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का उदाहरण है
द्वारा: देवयानी मदैइक | February 29, 2024 Read In English
नई दिल्ली: गीता सलीश कहती हैं, “मेरी आंखें दुनिया को नहीं देख सकतीं, लेकिन दुनिया को मुझे देखना चाहिए!” आंखों से न देख पाने वाली गीता, गीताज़ होम टू होम (Geetha’s Home To Home) चलाती हैं, जो अचार और मसाले का बिजनेस है, जिसे उन्होंने कुछ साल पहले शुरू किया था. गीता ने 15 साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो दी, लेकिन उन्होंने दुनिया में अपना नाम कमाने का सपना कभी नहीं छोड़ा. 15 साल की उम्र में उन्हें रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (Retinitis pigmentosa) नामक एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार (rare genetic disorder) हो गया था.
उन्हें धीरे – धीरे दिखाई देना बंद होने लगा, उस समय के बारे में बात करते हुए गीता ने कहा,
जब मैं आठवीं कक्षा में थी, तो मेरी नजर धुंधली होने लगी. फिर जांच कराने पर पता चला की मेरी आंखों की रोशनी जा रही थी. 12 साल की उम्र में मेरी आंखों की रोशनी कम होने लगी और 15 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते मुझे पूरी तरह से दिखाई देना बंद हो गया.
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जो काम वह पहले बिना किसी परेशानी के कर सकती थीं, आंखों की रोशनी जाने के बाद उन सामान्य कामों को करना भी उनके लिए मुश्किल हो गया. अपनी इन चुनौतियों के बारे में बात करते हुए गीता ने कहा,
मैंने इस बारे में अपने दोस्तों से बात करने की कोशिश की, लेकिन शुरुआत में किसी को भी मेरी समस्या समझ नहीं आई. इस सोच ने मुझे परेशान कर दिया था कि मैं अब कभी भी दुनिया को दोबारा नहीं देख पाऊंगी और वैसा जीवन नहीं जी पाऊंगी जैसा मैं जीती आई हूं!
उन्होंने राजनीति में स्नातक की डिग्री हासिल की और शुरुआत में नौकरी ढूंढने की काफी कोशिश की. हालांकि, उनकी विजुअल डिस्एबिलिटी की वजह से उन्हें कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने नौकरी की तलाश करना बंद कर दिया और फिर अपना सारा ध्यान अपने परिवार की देखभाल करने में लगाया. वह और उनके पति सलीश ने कुछ सालों तक जिले में एक छोटा रेस्टोरेंट चलाया. लेकिन किराये की जगह चले जाने के बाद उन्हें इसे बंद करना पड़ा.
इसके बाद उन्होंने ब्रेक ले लिया क्योंकि वह अपने बच्चों पर फोकस करना चाहती थीं. लेकिन बाद में जब उन्होंने दोबारा काम करने का फैसला किया तो उन्हें इस बार भी असफलता ही मिली. लेकिन गीता ने हार नहीं मानी, वो अपनी खुद की पहचान बनाना चाहती थी और फिर कोरोना वायरस महामारी के दौरान उन्होंने अपना फूड बिजनेस शुरू करने का फैसला किया.
अपने परिवार के सहयोग से, उन्होंने 2020 में गीता होम टू होम (Geetha’s Home To Home) की शुरुआत की और आज उनके इस बिजनेस में 17 महिलाएं काम कर रही हैं. गीता चाहती हैं कि उनका बिजनेस स्वास्थ्य को लेकर एक जागरूक समुदाय (health-conscious community) का निर्माण करे. इसलिए वह जो भी फूड प्रोडक्ट बेचती हैं, उसके कई हेल्थ बेनिफिट होते हैं.
अपने सिग्नेचर प्रोडक्ट करक्यूमील (Curcumeal) के बारे में बात करते हुए गीता ने कहा,
मैंने दो साल तक रिसर्च करने के बाद करक्यूमील (Curcumeal) प्रोडक्ट को डेवलप किया. यह हल्दी, खजूर, बादाम, नारियल का दूध और गुड़ का एक मिश्रण है. यह एक सुपर फूड सप्लीमेंट है, क्योंकि इसमें हल्दी के सभी गुण मौजूद हैं. हमने 100 बोतलों से शुरुआत की और आज हम इसकी 10,000 से ज्यादा बोतले बेच चुके हैं.
गीता के खुद पर विश्वास और परिवार के सहयोग ने ही उन्हें आज इस मुकाम तक पहुंचाया है. उन्होंने अपनी चुनौतियों को आगे बढ़ने के अवसरों के तौर पर देखा और इस सफर में आने वाली मुश्किलों या रुकावटों से घबराने की बजाए उनका डटकर सामना किया.
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समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.
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