40 वर्षीय अनूप चंद्रन और 36 साल की नेहल ठक्कर दिव्यांग हैं और उन्हें चलने-फिरने में समस्या है, लेकिन फिर भी वे गाड़ी चलाते हैं, जानिए कैसे!
द्वारा: आस्था आहूजा | एडिट: श्रुति कोहली | May 14, 2024 Read In English
साल 2003
तारीख : 22 जून
जगह : पाम बीच रोड, मुंबई
हादसा : कार दुर्घटना
चोट : रीढ़ की हड्डी टूटी
फिर आता है सन 2005
तारीख : 22 नवंबर
जगह : वही, पाम बीच रोड, मुंबई
हादसा : कार दुर्घटना
चोट : रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त
दो साल का अंतर, दो अलग-अलग हादसे. दो अलग-अलग लोग, लेकिन दोनों हादसे एक-दूसरे की कार्बन कॉपी जैसे हैं. इन हादसों की समानता का चक्र तब पूरा होता है जब इन दोनों हादसों के शिकार हुए दो लोग मिलते हैं और एक-दूसरे से प्यार कर बैठते हैं. इसके बाद वे शादी करते हैं और उनकी जिंदगी में शुरू हो जाता है, खुशियों का एक नया दौर.
पहले कार हादसे का शिकार अनूप चंद्रन थे, जबकि दूसरे में नेहल ठक्कर घायल हुई थीं.
अनूप कहते हैं,
”मैं पैसेंजर सीट पर बैठा था और अचानक कार सड़क से उतर गई. कार के ऊंचाई से गिरने का भारी असर मेरी रीढ़ पर पड़ा. एक्स-रे से पता चला कि मेरी रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर है, जिसके चलते कमर के नीचे का शरीर पैरालाइज हो गया है.”
दो साल बाद, कुछ ऐसा ही हुआ नेहल के साथ. वैसी ही एक तारीख, वही स्थान, वैसी ही कार, वैसी ही दुर्घटना और ठीक वैसी ही चोट.
दुर्घटना के कारण दोनों की जिंदगी व्हील चेयर के सहारे पर आ गई.
नेहल कहती हैं,
“पहले दो साल तक मुझे कठोर फिजियोथेरेपी से गुजरना पड़ा. मैंने सोचा कि अगर मैं खूब चलूंगी, तो मेरी मांसपेशियां मजबूत हो जाएंगी. जल्द ही, मुझे एहसास हुआ कि कोई भी फिजियोथेरेपी इसे ठीक नहीं कर सकती. मुझे अपनी जिंदगी की कड़वी हकीकत को स्वीकार करना पड़ा.”
अनूप ने कहा कि हालांकि इसमें समय लगा, पर जीवन में आगे बढ़ने के लिए व्यक्ति को अपने हालात के दायरे से बाहर निकलना ही पड़ता है और ऐसा ही उन्होंने किया.
इस तरह बड़े हादसे का शिकार हुई यह जोड़ी मजबूती के साथ अपने हालात से उबर कर सामने आई. इसका सबूत यह है कि भयंकर कार हादसे का शिकार होने के बावजूद आज दोनों फिर से कार चला रहे हैं.
यही नहीं, ये दोनों ही आज फुल टाइम जॉब कर रहे हैं. नेहल एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी चला रही हैं, तो अनूप स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में कार्यरत हैं.
बेबसी के दायरों को तोड़कर बाहर निकलने और शारीरिक बाधाओं से स्वतंत्र होने की अदम्य इच्छा ने अनूप को इसका समाधान खोजने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने अपने पैरों में कैलीपर्स पहनना शुरू कर दिया. बाद में उन्हें एक और बेहतर विचार आया. उन्होंने अपनी हुंडई कार को मॉडिफाई कराया.
अब उनकी कार का कंट्रोल फुट पैडल की जगह लीवर पर रहता है. अनूप बताते हैं
“कार की रफ्तार बढ़ाने के लिए लीवर खींचना होता है और ब्रेक लगाने के लिए इसे दबाना होता है, ठीक वैसे ही जैसे बाइक में होता है.”
उनकी कार क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) से अप्रूव्ड है.
उनकी कार हफ्ते के अलग-अलग दिनों में इन दोनों के पास रहती है. अनूप सप्ताह में तीन दिन और नेहल चार दिन कार चलाती हैं.
अनूप कहते हैं,
“मैं हर किसी पर अपनी कारों को मॉडिफाई करवाने के लिए दबाव डालता रहता हूं. बाहर निकलो, काम करो, समाज में अपनी पहचान बनाओ, मैं सबसे यही कहता हूं.”
समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.
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