अदिति का जीवन इस बात की मिसाल है कि कुछ भी असंभव नहीं है
प्रेरक कहानियां

डेटा एंट्री से लेकर ड्रीम कैफे तक जानिए अदिति की सफलता की कहानी

अदिति दूसरों को सशक्त बनाने में यकीन रखती है और चाहती है कि उनके कैफे सिर्फ खाने की जगह न होकर उससे कहीं ज्यादा हों. वह उन्हें कम्युनिटी हब (community hubs) के तौर पर देखती है जहां हर कोई खुद को खास और जुड़ा हुआ महसूस करता है

द्वारा: मन्तशा रियाज़ | एडिट: श्रुति कोहली | May 22, 2024 Read In English

नई दिल्ली: बचपन में तंग किए जाने से लेकर आंत्रप्रेन्योर बनने तक का उनका सफर साबित करता है कि अदिति एक रोल मॉडल हैं. डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) के साथ जन्मी अदिति को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उनके फैमिली डॉक्टर को शुरू में ही पता चल गया था कि वह एक स्पेशल चाइल्ड हैं. हालांकि, यही भिन्नता उनकी ताकत बन गई.

अदिति, जो आज मुंबई में दो कैफे की ओनर हैं, कहती हैं,

“मैंने अपने माता-पिता के ऑफिस से काम करना शुरू किया था. मेरा काम डेटा से संबंधित होता था. इस तरह का काम मुझे बहुत ऊबाऊ लगता था और एक अधूरापन महसूस होता था. एक दिन जब मैंने एक चाय बेचने वाले को देखा, तो सब कुछ बदल गया. उसे देखकर मुझे एक कैफे शुरू करने का आइडिया आया. मेरी मां ने हर कदम पर मेरा साथ दिया.”

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अदिति का यह सपना तब हकीकत में बदल गया, जब उन्होंने साल 2016 में अपना पहला कैफे लॉन्च किया. खाना पकाने के उनके शौक और प्यार से परोसने के तरीके ने जल्द ही उनके कैफे को पूरे मोहल्ले में खाने की सबसे पसंदीदा जगह बना दिया.

वे कहती हैं,

“मैं एक ऐसी जगह चाहती थी, जहां लोगों को आकर अच्छा लगे और जहां मैं खाने से जुड़े अपने पैशन को उनके साथ शेयर कर सकूं.”

आज वह एक नहीं, बल्कि दो बेहद पॉपुलर कैफे चलाती हैं. एक आंत्रप्रेन्योर के तौर पर उनके इस सफर से पता चलता है कि रुकावटें महज सफलता की सीढ़ियां होती हैं.

अदिति का कुकिंग और हॉस्पिटैलिटी के प्रति लगाव शेफ विकास खन्ना से प्रेरित है. उनका स्टार्टअप दिव्यांग लोगों के लिए अपना टैलेंट दिखाने और अपने सपनों को हासिल करने के लिए एक प्लेटफार्म के तौर पर भी काम करता है.

अदिति दूसरों को सशक्त बनाने में यकीन रखती हैं और चाहती हैं कि उनके कैफे सिर्फ खाने की जगह न होकर उससे कहीं ज्यादा हों. वह उन्हें कम्युनिटी हब (community hubs) के तौर पर देखती हैं जहां हर कोई खुद को खास और जुड़ा हुआ महसूस करता है. इसलिए यह देखकर कोई हैरानी नहीं होती कि उनके कैफे में सर्व करने वाले दो लोग दिव्यांग हैं.

जैसे-जैसे अदिति अपना बिजनेस बढ़ा रही हैं, वे एक मिसाल कायम कर रही हैं. उनका जीवन इस बात का शानदार उदाहरण है कि कुछ भी असंभव नहीं है.

अदिति मुस्कुराते हुए कहती है, जो उनके इरादों की मजबूती को भी जाहिर करता है, “यदि आप कोई सपना देख सकते हैं, तो उसे हकीकत में भी बदल सकते हैं.”

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इस पहल के बारे में

समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्‍यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.

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