ज्योति और रूपेश की शादी को चार साल हो गए हैं और दोनों मिलकर एक बेटी का पालन-पोषण कर रहे हैं
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दिव्यांगता की बेड़ियां तोड़कर ‘खुशहाल शादी’ की नई परिभाषा गढ़ रहा है ये कपल

इस वैलेंटाइन्स डे पर बेंगलुरु में रहने वाले ज्योति और रूपेश, जोकि एक कपल हैं, अपनी दिव्यांगता की चुनौतियों से लड़ते हुए अपनी लाइफ जर्नी शेयर कर रहे हैं

द्वारा: आस्था आहूजा | एडिट: सोनिया भास्कर | February 14, 2024 Read In English

नई दिल्ली: हर सुबह जरूरत पड़ने पर ज्‍योति रूपेश की शर्ट के बटन लगाने, जैकेट की जिप लगाने और जूते के फीते बांधने में मदद करती है, क्योंकि रूपेश के शरीर का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त है. जब भी घर में सफाई की आवश्यकता होती है, तब रूपेश खुद से जिम्मेदारी लेते हैं और दीवारों से धूल साफ करते हैं. जब भी ज्‍योति घर से बाहर निकलती है तो रूपेश ज्‍योति की आंख बन जाते हैं. 44 साल के रूपेश शशिधरन कहते हैं, “हम एक-दूसरे के साथ सिर्फ एडजस्‍ट नहीं कर रहे बल्कि, हम एक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं, यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा है जिसे मैं अभी जी रहा हूं”

रूपेश को पांच साल की उम्र में मेनिनजाइटिस नाम की बीमारी का पता चला. इसकी वजह से उनके शरीर का बायां हिस्सा कमजोर हो गया.

26 साल की उम्र में, ज्योति को रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा का पता चला, जो आंख से जुड़ी एक बीमारी है. यह बीमारी ज्यादातर लोगों को अंधा कर देती है.

इस वैलेंटाइन डे पर, ज्योति और रूपेश अपनी लव स्‍टॉरी शेयर कर रहे हैं, जो रोज दिव्यांगता और स्टीरियोटाइप की सभी चुनौतियों को पार करते हुए कुछ अलग अहसास कराती है.

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समय के साथ दिव्‍यांगता का सामना करना और उसके साथ जीना सीखना

“हम ऐसी लड़की को नहीं अपना सकते जो देख नहीं सकती. वह क्या काम करेगी?” ज्योति को अपने पहले ससुराल में ऐसी कई अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा, जब 26 साल की उम्र में ज्‍योति को रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा का पता चला था. शादी के ठीक एक साल बाद, ज्योति को रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा होने के कारण तलाक के पेपर भेजे गए थे. उस घटना को याद करते हुए ज्योति कहती हैं –

“जब मेरे दिमाग में सूजन की खबर मिली तो मुझे अस्‍पताल में भर्ती कराया गया और एक महीने तक वहां रखा गया. मुझे दवाइयों की भारी खुराक दी गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि अचानक मेरी आंखों को गंभीर नुकसान हुआ. इसके बाद रातों-रात मेरी जिंदगी खराब हो गई; सारे रंग खोना. मेरी नजरें स्थिर नहीं है; मैं केवल 10-20 प्रतिशत ही देख सकती हूं.”

इसके बाद जिंदगी हर दिन ज्‍योति के सामने नई चुनौतियां पेश करने लगी. जैसे, आगरा में ज्‍योति के बड़े घर में आधी रात को अकेले शौचालय का उपयोग करने का मतलब दीवारों और वस्तुओं से टकराना. ज्योति ने कहा कि,

“मेरा जीवन उलट-पुलट हो गया लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे संभाले रखा और मेरा समर्थन किया.”

ज्‍योति ने आगे कहा,

“शुरुआती दो-तीन साल तक तो मैं अपने माता पिता के साथ रही, लेकिन फिर सोचा कि ऐसे कब तक अपने माता पिता पर बोझ बनकर मैं घर पर बैठ सकती हूं, फिर मैंने अपनी जिंदगी संभालने का फैसला किया और धीरे-धीरे घर का काम शुरू कर दिया. पहले मैंने खाना बनाना और सफाई करना सीखा.”

फिर ज्योति ने अपने नए जीवन को अपनाने के लिए ब्‍लाइंड स्‍कूल में एप्‍लाई किया और बेंगलुरु में Enable India में सात महीने के कंप्यूटर कोर्स में एडमिशन ले लिया. वहां उनकी मुलाकात सीनियर सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर के पोस्‍ट पर कार्य कर रहे रूपेश शशिधरन से हुई.

बार-बार सिरदर्द की शिकायत के बाद रूपेश को मेनिनजाइटिस नाम की बीमारी का पता चला. प्रारंभ में, माता-पिता और डॉक्टरों ने यह मान लिया कि रूपेश का बार-बार सिरदर्द होना स्कूल न जाने का एक बहाना था. लेकिन जब उनके शरीर का बायां हिस्सा कमजोर हो गया, जिससे वे दिव्यांग हो गए, तक उनकी बीमारी का कारण सामने आया.

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मुंबई में जन्मे और पले-बढ़े रूपेश कहते हैं,

“उपचार के तुरंत बाद मुझे बिस्तर पकड़ना पड़ा, मैं अपनी बायीं आंख नहीं खोल सकता था. मेरा बायां हाथ उलटा मुड़ गया. सर्जरी के बाद इसे सीधा तो कर दिया गया लेकिन आज भी मैं इसका इस्‍तेमाल नहीं कर पा रहा हूं. मुझ पर सभी प्रकार के इलाज आजमाए और परखे गए. मेरे माता-पिता ने मेरी स्कूली शिक्षा बंद कर दी और मुझे आयुर्वेदिक उपचार के लिए केरल ले गए लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. मेरे माता-पिता ने मुझे घर से बाहर निकलने की अनुमति न देकर मुझ पर और अधिक प्रतिबंध लगा दिया. कॉलेज शुरू करने के बाद ही मुझे वास्तविक दुनिया से परिचय हुआ.”

अपने माता-पिता से समर्थन की कमी के बावजूद, रूपेश ने अपने स्कूल के दिनों में आईटी सेक्टर में काम करना शुरू कर दिया. जब वह 8वीं कक्षा में थे, तब उन्होंने डेस्कटॉप असेंबल करना शुरू कर दिया और जब भी कोई समस्या आती तो अपने कंप्यूटर को ठीक करना शुरू कर देते थे.

रूपेश ने अपने करियर की शुरुआत डोर-टू-डोर सेल्स और मार्केटिंग से की लेकिन धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी में वापस आ गए. रूपेश 23 साल से आईटी सेक्टर में काम कर रहे हैं. उन्होंने रोजाना सामने आने वाली कुछ चुनौतियों को शेयर करते हुए कहा –

“जब भी कोई मुझसे कहता है ‘तुम यह नहीं कर सकते’. मैं कहता हूं, ‘मैं करूंगा’ और मैंने किया. उदाहरण के लिए, मैं प्रतिदिन काम पर जाने के लिए एक तरफ से 25 किमी ड्राइव करता हूं. मेरा बायां हाथ ठीक से काम नहीं करता है और मेरा पैर कमजोर है लेकिन फिर भी मैं दोपहिया वाहन चलाता हूं. आईटी सेक्टर में काम करने में एक्सेल का बहुत सारा काम शामिल होता है और मैं इसे एक हाथ से करता हूं.

रूपेश को एक वैवाहिक साइट (matrimonial site) के माध्यम से जीवनसाथी तो मिला लेकिन उनकी शादी लगभग एक दशक के बाद ही तलाक में समाप्त हो गई. रूपेश की पिछली पार्टनर आर्थिक रूप से संपन्न थीं जिसके कारण दोनों के बीच मतभेद हो गए.

जब प्‍यार हुआ

लेकिन ज्योति और रूपेश को न तो दिव्यांगता और न ही असफल विवाह दोबारा प्यार पाने से रोक सके. वह दोनों दोबारा प्‍यार में पड़ गए. रूपेश कहते हैं,

“Disability शब्‍द में ability है. जब मुझे ज्योति मिली तो मैंने उसकी दिव्यांगता नहीं देखी. हमें एक-दूसरे में एक साथी और सपोर्ट सिस्‍टम मिला.”

हालांकि, जब दोनों ने शादी करने का फैसला किया, तो उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा. रूपेश के परिवार ने उससे सारे रिश्ते तोड़ दिए. रूपेश कहते हैं,

“मेरी मां ने ज्योति की दिव्‍यांग होने के कारण उसे सपोर्ट नहीं किया. उन्होंने पूछा कि ज्योति आंख की परेशानी की वजह से घर कैसे संभालेगी और बच्चे का पालन-पोषण कैसे करेगी.”

दूसरी तरफ जब ज्योति ने रूपेश से शादी करने का फैसला किया, तब तक वह अपने सबसे बड़े सपोर्ट सिस्टम, यानि अपने पिता को खो चुकी थी. उसने सबसे पहले यह खबर अपनी बहन के साथ शेयर की जिसने कहा,

“तुम्हारे माता-पिता के बाद तुम्हारी देखभाल कौन करेगा? आप अपना जीवन अकेले नहीं बिता सकते. अगर आपको लगता है कि रूपेश सही लड़का है, तो तुम्‍हें आगे बढना चाहिए.”

फिर ज्‍योति और रूपेश के साथियों ने एक मंदिर में उनकी शादी कराने की व्यवस्था की.

दिव्यांगता की बेड़ियां तोड़कर यह कपल 'खुशहाल शादी' की नई परिभाषा गढ़ रहा है

रूपेश और ज्योति अपनी बेटी सेराह के साथ

रूपेश कहते हैं,

“मेरा मानना है कि प्यार पाना मानसिक अनुकूलता पर निर्भर करता है न कि शारीरिक दिव्‍यांगता पर. हमारी शादी को चार साल हो गए हैं और हम खुशी-खुशी अपना रास्ता तलाश रहे हैं. उदाहरण के लिए, ज्योति के साथ सार्वजनिक बसों से यात्रा करना असंभव है. या अगर हम ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं और ज्योति को शौचालय का उपयोग करने की आवश्यकता है, तो मुझे उसके साथ जाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी तीन साल की बेटी की देखभाल के लिए कोई वहां मौजूद है या नहीं.”

इसी तरह, ज्योति को भी कभी-कभी घर के कामों में परेशानी का सामना करना पड़ता है, जब उसकी तीन साल का बेटी खेलते हुए घर में रखे हुए सामान को अपने स्‍थान से हटा देती है तो ज्‍योति सेंस ऑर्गन – स्पर्श और अनुभव का उपयोग करके खाना बनाती है और घर का काम करती है.

अपनी दिव्‍यांगताओं से उबरने के बारे में आगे बात करते हुए रूपेश ने कहा कि,

“हम अपनी बेटी को हर समय पायल पहनाते हैं, ताकि पायल की आवाज से मेरी पत्नी हमारी बेटी का पता लगा सके. जब भी मैं अपने परिवार से दूर होता हूं, मुझे लगातार चिंता रहती है कि घर पर क्या हो रहा होगा. उदाहरण के लिए, कल मेरी बेटी ने अपने पूरे शरीर पर लिपस्टिक लगाई और दीवारों पर भी रंग लगाया. कुछ चीजें ऐसी हैं जिन्हें आप नियंत्रित नहीं कर सकते.”

रूपेश के साथ अपना जीवन बिताकर ज्‍योति बहुत खुश महसूस करती हैं. वह कहती हैं-

“किसी को दिव्‍यांगता से ऊपर देखें.”

यह एक-दूसरे के प्रति उनका प्यार और आपसी साझेदारी में उनका दृढ़ विश्वास है जो इस कपल को उनकी दिव्‍यांगता से उबरने और एक खुशहाल शादीशुदा जीवन जीने में मदद करता है.

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इस पहल के बारे में

समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्‍यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.

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