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डॉक्टरों ने कहा था उनकी जिंदगी एक ‘लकड़ी की गुड़िया’ जैसी होगी, लेकिन…
निपुण मल्होत्रा पिछले एक दशक से डिसेबिलिटी राइट्स एडवोकेट (Disability rights advocate) के तौर पर काम कर रहे हैं और दिव्यांग लोगों के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र को समावेशी बनाने की दिशा में उन्होंने निपमैन फाउंडेशन की शुरुआत की
नई दिल्ली: डिसेबिलिटी राइट्स एडवोकेट और निपमैन फाउंडेशन के संस्थापक निपुण मल्होत्रा कहते हैं, “दिव्यांग व्यक्ति के रूप में जीने का मतलब है कमजोरी की स्थायी भावना को महसूस करना.” दिल्ली के मूल निवासी निपुण एक दशक से ज्यादा समय से दिव्यांग लोगों (PwDs) के अधिकारों की वकालत कर रहे हैं. दिव्यांग लोगों के लिए एक फाउंडेशन शुरू करने का उनका निर्णय सालों से उनके द्वारा महसूस गए भेदभाव का ही परिणाम है.
निपुण के जन्म के दौरान उनमें आर्थ्रोग्रिपोसिस (Arthrogryposis) का पता चला था. यह एक ऐसी कंडीशन है जिसमें जोड़ों में सिकुड़न होती है, हाथ और पैर की मांसपेशियां अविकसित यानी अंडर डेवलप रह जाती हैं.
इस डिसेबिलिटी का पता चलने पर डॉक्टरों ने उनके माता-पिता को इसके बारे में इन्फॉर्म किया और बताया कि उनकी इस कंडीशन का मतलब है कि बच्चे को ‘लकड़ी की एक गुड़िया’ जैसा जीवन जीना होगा.
लेकिन उनके माता-पिता ने हार नहीं मानी और इस चुनौती से लड़ने के लिए हर कदम पर निपुण के लिए ढाल बनकर खड़े रहे. शुरू से ही, उन्होंने निपुण को क्विज और दूसरे एकेडमिक कंपटीशन में भाग लेने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई पर फोकस करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे उसे आत्मविश्वास हासिल करने में काफी मदद मिली.
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एक अव्वल स्टूडेंट रहे निपुण ने अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद कई कंपनियों में नौकरियों के लिए आवेदन किया, लेकिन पैनलिस्टों ने उनकी काबिलियत की जगह हर बार उनकी व्हीलचेयर पर ज्यादा ध्यान दिया. ऐसी ही एक दर्दनाक घटना को याद करते हुए निपुण ने कहा,
कई साक्षात्कारकर्ताओं ने मुझसे पूछा कि क्या मैं दिन में आठ घंटे व्हीलचेयर पर बैठ सकता हूं, वहीं कुछ को मेरी शैक्षणिक उपलब्धियों पर यकीन ही नहीं हुआ और उन्होंने इसकी पुष्टि के लिए कॉलेज के प्रिंसिपल से बात की. ऐसे कई अपमानजनक अनुभव हैं, जिनका मैंने अपने जीवन में सामना किया है.
निपमैन फाउंडेशन शुरू करने का सफर
2012 में निपुण ने अपने अधिकारों और दूसरे दिव्यांग लोगों के अधिकारों के लिए खड़े होने का फैसला किया और इस तरह निपमैन फाउंडेशन (Nipman Foundation) की नींव रखी गई. अपनी मां, प्रियंका मल्होत्रा (Priyanka Malhotra) के साथ सह-स्थापित, निपमैन फाउंडेशन एक्सेसिबिलिटी ऑडिट, संवेदीकरण कार्यशालाएं (sensitisation workshops) आयोजित करने और ऐसे बहुत से प्रयासों के जरिए दिव्यांग लोगों के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र को समावेशी बनाने की दिशा में काम कर रही है.
निपमैन फाउंडेशन में, निपुण ने 3A (एटिट्यूड, एक्सेसिबिलिटी और अफोर्डेबिलिटी) फ्रेमवर्क भी डेवलप किया है, जिसके माध्यम से उन्होंने कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संगठनों और विभागों को दिव्यांग लोगों के लिए समावेशी बनने में मदद की है.
वर्कप्लेस में दिव्यांग लोगों के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने वाले संगठनों को सम्मानित करने के लिए फाउंडेशन सालाना एक फ्लैगशिप प्रोग्राम, ‘Nipman Foundation: Equal Opportunity Awards’ का भी आयोजन करती है. इसके अलावा, निपमैन फाउंडेशन ने डोनर्स को उन लोगों से जोड़ने के लिए जो व्हीलचेयर नहीं खरीद सकते, ‘व्हील्स फॉर लाइफ’ नाम से एक क्राउड-सोर्सिंग प्लेटफॉर्म चलाना शुरू भी किया.
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जोमैटो (Zomato) को दिव्यांग लोगों (People with Disabilities – PwD) के लिए एक समावेशी मंच बनाना
निपुण बताते हैं, उनके लिए यह किसी सामाजिक शर्मिंदगी से कम नहीं था जब उन्हें 2015 में दिल्ली के एक महंगे रेस्टोरेंट में एंट्री करने से सिर्फ इसलिए मना कर दिया गया क्योंकि वह ‘दिव्यांग ‘ थे. इस घटना के बाद उन्होंने एक पॉपुलर रेस्टोरेंट एग्रीगेटर जोमैटो (Zomato) से कॉन्टेक्ट किया और उन्हें एक एडिशनल फिल्टर, दिव्यांग-अनुकूल (Disabled-friendly) फीचर जोड़ने की सलाह दी, ताकि दूसरे दिव्यांग लोगों को उनके द्वारा सामना किए गए अनुभव से न गुजरना पड़े. निपुण ने आगे कहा,
मुझे नहीं पता था कि यह एक बड़ी उपलब्धि बन जाएगी. Zomato ने यह फीचर ऐड किया, और इसके बाद, कई दूसरी रेस्टोरेंट-सर्चिंग वेबसाइटों ने भी इस फीचर को जोड़ा.
डिसेबिलिटी राइट्स एडवोकेट के रूप में उपलब्धियां
36 साल के निपुण ने न केवल एक फाउंडेशन की शुरुआत की, बल्कि उन्होंने पिनेडा फाउंडेशन इनिशिएटिव (Pineda Foundation initiative), वर्ल्ड इनेबल्ड में एक रिसर्च फेलो के तौर पर भी काम किया, और कॉर्पोरेट सेक्टर में दिव्यांग लोगों (people with disabilities – PwD) को शामिल किए जाने को बढ़ावा देने के लिए स्पेशल एबिलिटीज पर सीआईआई राष्ट्रीय समिति (CII National Committee) के सदस्य भी रहे हैं.
इसके अलावा, वह दिव्यांग व्यक्तियों को सशक्त बनाने के लिए FICCI (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) की उप समिति के संस्थापक अध्यक्ष हैं.
वह भारत की पहली एक्सेसेबल ट्रैवल कंपनी उमोजा ट्रैवल्स (Umoja Travels) के ब्रांड एंबेसडर भी हैं. इसके अलावा, निपुण गुड़गांव में दिव्यांगता और विकास (Disability and development) पर काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था विश्वास (Vishwas) के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में भी शामिल हैं.
दिव्यांगता -समावेशी वातावरण बनाने की दिशा में अब तक मिली कामयाबी
निपुण ने कहा, जब दिव्यांग लोगों के लिए एक समावेशी वातावरण बनाने की बात आती है तो भारत ने इस मामले में एक लंबा सफर तय किया है. उन्होंने आगे कहा,
चाहे वह दिव्यांगता भेदभाव अधिनियम 1992 (Disability Discrimination Act – DDA) हो या दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016, भारत सरकार ने सार्वजनिक जीवन के कई क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्ति के साथ भेदभाव को गैरकानूनी बनाने की दिशा में काम किया है, जिसमें रोजगार, शिक्षा, सेवाएं प्राप्त करना या उपयोग करना, घर को किराए पर लेना या खरीदना, सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच आदि शामिल है, लेकिन हम अभी भी किसी को पीछे न छोड़ने के लक्ष्य को हासिल करने से बहुत दूर हैं.
निपुण ने दिव्यांग लोगों के लिए तीन सबसे बड़ी चुनौतियों और किसी को भी पीछे न छोड़ने के लक्ष्य को हासिल करने में आने वाली रुकावटों को भी हाईलाइट किया. इनमें दिव्यांगता से जुड़ा कलंक भी शामिल है, कि यह पिछले जन्मों के बुरे कर्मों का नतीजा है, दिव्यांगों को जीवन के कई आयामों में कई अभावों और सीमित अवसरों का सामना करना पड़ता है, हेल्थकेयर, कॉर्पोरेट या गवर्नमेंट सेक्टर में स्ट्रक्चरल गैप का मौजूद होना. आगे विस्तार से बताते हुए निपुण ने कहा,
दिव्यांग लोगों (PwD) की सहायता के लिहाज से इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है. उदाहरण के लिए, ज्यादातर अस्पतालों या सरकारी बिल्डिंग में रैंप नहीं होते हैं, और अक्सर बैठने की जगहों या बेंचों तक आसान पहुंच के लिए कोई रास्ता भी नहीं होता है. पब्लिक टॉयलेट्स में फिसलने और गिरने से बचने के लिए पकड़ने के लिए ग्रैब बार (grab bars) नहीं होते हैं, और वॉश बेसिन को एक स्टैंडर्ड हाइट पर लगाया जाता है, जो ज्यादातर दिव्यांगों के अनुकूल नहीं होती है.
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उपाय जो आज के समय की मांग हैं
36 साल के निपुण ने उन उपायों के बारे में बताया, जिन्हें दिव्यांग लोगों के लिए एक समावेशी वातावरण बनाने के लिए ध्यान में रखा जाना चाहिए:
- ग्रामीण क्षेत्रों में संवेदीकरण कार्यक्रम (sensitisation programmes) संचालित किए जाएं और दिव्यांग लोगों (PwD) से जुड़े कलंक को खत्म करें.
- मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए दिव्यांगता संवेदनशीलता (disability sensitisation) को एक अनिवार्य विषय बनाया जाना चाहिए.
- सरकारी कार्यालयों और अस्पतालों में एक्सेस ऑडिट आयोजित होने चाहिए .
- सरकारी अधिकारियों और पैरामेडिक्स (paramedics) के लिए ट्रेनिंग वर्कशॉप आयोजित की जानी चाहिए.
- सार्वजनिक स्थानों को दिव्यांग लोगों (PwD) के लिए सुलभ बनाने का मतलब है एंट्रेस, फ्लोर स्पेस और हॉलवे के पास पार्किंग स्पेस को इक्विपमेंट और दूसरी चीजों से फ्री रखना.
- स्टाफ और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को सांकेतिक भाषा में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए या उनके साथ किसी ऐसे व्यक्ति को रखना चाहिए जो सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल कर सके.
- दिव्यांग लोगों की जरूरत के मुताबिक स्कूल और कॉलेज बिल्डिंग को रैंप, रेल, स्पेशल टॉयलेट और दूसरे जरूरी बदलावों के साथ अपग्रेड करना.