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विशेष योग्यताओं को बढ़ावा दे कर सपनों को सच कर रहा यह परिवार

सीमाओं में कैद नहीं इनका प्यार: दिव्यांग बच्चों के साथ मजबूती से खड़े परिवारों की प्रेरक कहानियां

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नई दिल्ली: विशेष रूप से सक्षम यानी दिव्‍यांग लोगों को अक्सर हस्तशिल्प या मोमबत्तियां बनाना ही क्यों सिखाया जाता है? उनके पास चुनने के लिए करियर के बेहतर विकल्प क्यों नहीं हो सकते?

ये कुछ ऐसे सवाल थे जिनका जवाब तारित, शैशव और विकास जैसे युवा वयस्कों के माता-पिता ढूंढ़ रहे थे. भारत में लगभग 30 मिलियन दिव्‍यांग लोग हैं.

फिर भी, मार्केट इंटेलिजेंस फर्म अनअर्थिनसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से गिने-चुने लोगों को ही रोजगार मिल पाता है.

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इस डेटा और स्टैटिस्टिक्स से निराश होने के बजाय, इन परिवारों ने खुद एक्टिव हो कर इसके लिए कुछ करने का विकल्प चुना.

प्यार और समर्थन का होता है बड़ा असर

“जब तारित का जन्म हुआ, तो मुझे बताया गया कि उसके पास ज्यादा समय नहीं है. मेरे पास दो विकल्प थे. पहला, वास्तविकता को स्वीकार करना और दुखी होना या फिर उसे बिना शर्त प्यार देना. मैंने दूसरा विकल्प चुना और आज हम 31 साल बाद भी एक बेहतरीन जिंदगी जी रहे हैं!” तारित की मां अंजू खन्ना ने बताया कि उन्‍हें तारित के जन्म के समय ही उसको डाउन सिंड्रोम होने का पता चल गया था.

नई संभावनाएं तलाशना ही है उपाय

वीना कपाही कहती हैं “मैं दो दिव्‍यांग बच्चों की मां हूं. पिछले कुछ वर्षों में हमने उनकी लाइफ स्किल्स के साथ काफी एक्सपेरिमेंट किया है. कला और संगीत से लेकर खेल और बेकिंग तक, हमने सब कुछ आजमाया है, क्योंकि हमें पता नहीं होता कि कौन सी चीज काम कर जाएगी.”

विशेष जरूरतों वाले लोगों की प्रतिभाओं को पहचानना अकसर मुश्किल होता है, क्योंकि उनकी डिसेबिलिटी आमतौर पर उनकी प्रतिभाओं पर हावी हो जाती हैं. शैशव की बहन श्रेया कहती हैं,

“जब मैं अपने लिए करियर के विकल्प तलाश रही थी, तो मैंने अपने भाई को उसका पैशन खोजने के लिए प्रोत्साहित किया. हमने बेकिंग से शुरुआत की. फिर हमने कुछ समय तक  मोमबत्तियां बनाईं. हालांकि, जब भी हमने इन्हें करियर विकल्प के रूप में अपनाने के बारे में सोचा, तो हमें सोचना पड़ा कि क्या वह इनमें से किसी काम को वह लंबे समय तक कर सकेगा.”

बच्‍चों और माता-पिता दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं मेंटरशिप क्लासेस

खन्ना कहती हैं, “तारित की सफलता की कुंजी पारंपरिक स्कूली शिक्षा नहीं थी. हालांकि यह उनके सामाजिक और व्यावसायिक कौशल को निखार रही थी. सफलता के लिए अक्सर सही पहचान और आगे बढ़ने के उचित मार्गदर्शन की जरूरत होती है,”

तारित और उनके साथियों ने पाया कि उन्हें फोटोग्राफी का शौक है. जल्द ही सुनहरे सपनों वाले युवाओं के इस समूह ने यूनिक फॉर आईज फोटोग्राफी की स्थापना की, एक ऐसा संगठन जो उन्हें और उनके जैसे अन्य लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने में मदद करेगा.

खन्ना काफी जोर देकर यह बात कहती हैं कि फोटोग्राफी ने इन युवाओं को ऐसे कौशल से लैस किया है, जो मुख्यधारा की शिक्षा नहीं कर सकती.

उनकी फोटोज को काफी सराहना मिली है और आज इन्‍हें उनकी कामयाबी की तस्वीर के रूप में देखा जा सकता है. हाल ही में उनके काम को आर्ट फॉर होप 2024 प्रोजेक्‍ट के तहत नई दिल्ली के त्रिवेणी कला केंद्र में प्रदर्शित किया गया था. उन्होंने अपने गुरु सिद्धार्थ पुरी के साथ मिलकर जल संकट पर केंद्रित डिजिटल आर्ट बनाई.

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