प्रेरक कहानियां

ऊंची उड़ान: मेजर डी.पी. सिंह के विश्वास ने दिव्यांग लोगों के अधिकारों के लिए एक क्रांति को जन्म दिया

कारगिल युद्ध के दौरान अग्रिम मोर्चे पर सेवा करते समय मेजर डीपी सिंह ने अपना एक अंग खो दिया था. लेकिन वह चुनौतियों से उभरे और अन्य विकलांग लोगों को भी ऐसा हासिल करने में सहायता की

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डी.पी. सिंह भारत के पहले ब्लेड रनर, एशिया के पहले दिव्यांग एकल स्काइडाइवर और पायलट हैं

नई दिल्ली:कारगिल वॉर के दिग्गज मेजर डी.पी. सिंह कहते हैं, “छोड़ देना (Quit) बहुत आसान है. लेकिन, मैं असफल होने पर भी कोशिश करना पसंद करता हूं.” मेजर सिंह कोई आम इंसान नहीं हैं. वह उनमें से नहीं हैं, जो जिंदगी में चुनौतियों से परेशान होकर जीना ही छोड़ दे. कारगिल युद्ध में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. लेकिन कुछ साल बाद, उन्हें एशिया के पहले दिव्‍यांग एकल स्काइडाइवर और पायलट के रूप में ख्याति मिली. यात्रा निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए मेजर सिंह ने पूरी कोशिश की है. इसके बारे में बात करते हुए वह कहते हैं,

“एक समय पर मैं बिस्तर तक ही सीमित था. लेकिन मुझे पता था कि मुझे वापस उठना होगा. भावनात्मक उथल-पुथल आसान नहीं थी.”

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उन्हें फिर से दौड़ने में दस साल लग गए. कृत्रिम पैर की आदत पड़ने के बाद उन्होंने धीमी और सधी शुरुआत की और तीन मैराथन जीते.

मेजर सिंह की इन उपलब्धियों ने उन्हें अन्य दिव्यांग लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित किया और इस तरह द चैलेंजिंग ओन्स का जन्म हुआ, जो लोगों के लिए एक सहायता समूह है.

दिव्यांग व्यक्तियों के पास कई व्यावसायिक ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक पहुंच है. इसके साथ ही दिव्यांग लोगों की उनके परिवार के साथ काउंसलिंग भी की जाती है, ताकी इस यात्रा में उन्हें भरपूर समर्थन मिल सके. इसका मुख्य लक्ष्य युद्ध में दिव्‍यांग हुए लोगों को स्पोर्ट और एडवेंचर एक्टिविटी में शामिल होने के लिए प्रेरित करना है, ताकि उनका आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ाया जा सके.

मेजर सिंह द्वारा की गई यह पहल एक व्यक्ति पर पड़ने वाले गहरे प्रभाव को दर्शाती है, अगर ज्यादा लोग इसी तरह के प्रोगेसिव माइंडसेट के हों तो समाज में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.

दिव्यांगों लोगों के लिए एक बेहतर समाज बनाने में हुई प्रोग्रेस के बारे में बात करते हुए मेजर सिंह ने कहा,

“पिछले दशक में बहुत सारे बदलाव हुए हैं. पब्लिक ने दिव्यांग लोगों को किसी और सामान्य इंसान की तरह ही स्वीकार करना शुरू कर दिया है और यह मेरे जैसे लोगों के कामों की वजह से संभव हुआ है. यहां तक ​​कि सरकार ने भी जमीनी स्तर पर, खासकर खेल के क्षेत्र में काम करने के प्रयास किए हैं. खेलों के प्रभाव के कारण दिव्यांगों के प्रति मानसिकता बदल रही है.”

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