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इन्क्लूसिव फैशन: जानिए, क्या है एडाप्टिव क्लोदिंग?

रोजमर्रा के कपड़े अनजाने में समाज के एक महत्वपूर्ण हिस्से को बाहर कर सकते हैं, जिसमें विकलांग लोग भी शामिल हैं. एडॉप्टिव क्लोदिंग के जरिये इस समस्या के समाधान का प्रयास फैशन की दुनिया में एक आशा की किरण बिखेर रहा है

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नई दिल्ली: कपड़े किसी व्यक्ति की खास पहचान का एक अहम हिस्सा होते हैं. इसलिए कपड़े आरामदायक, आत्मविश्वास देने वाले, व्यक्तित्व की गरिमा के अनुरूप होने चाहिए और ये आपकी गतिविधियों व कामकाज में बाधक नहीं बनने चाहिए. शर्ट के बटन लगाने जैसी-जैसी छोटी-छोटी-सी बातें आम लोगों को मामूली-सी लग सकती हैं, लेकिन दिव्‍यांग लोगों के लिए, यह एक मुश्किल भरा काम लग सकता है और उनके लिए यह दिनचर्या का एक कठिनाई भरा हिस्सा हो सकता है. कोलकाता की रहने वाली सौमिता बसु दिव्‍यांग लोगों की इस दिक्कत से अच्छी तरह वाकिफ हैं.

28 साल की उम्र में उन्‍हें सोरियाटिक गठिया की बीमारी हो गई, जिसने उनके शरीर की मांसपेशियों को बुरी तरह प्रभावित किया. इससे उनके लिए कपड़े पहनने और उतारने जैसा सरल काम काफी चुनौतीपूर्ण बन गया. इस स्थिति का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने के उनके व्यक्तिगत संघर्ष ने दिव्‍यांग लोगों के लिए एक अनुकूल और इस्तेमाल में आसान कपड़ों के ब्रांड, जेनिका फैशन को जन्म दिया.

जेनिका इनक्लूसिव फैशन की संस्थापक और सीईओ सौमिता बसु ने कहा,

“हमारे पास ऐसे कपड़े हैं, जिन्हें केयरटेकर अपने हाथ या किसी भी चीज को हिलाए बिना किसी व्यक्ति को पहनाने में मदद कर सकता है. वह बस बैठ जाती हैं और यह खुल जाता है और जिस देखभाल करने वाला शख्स इसे शरीर पर लपेट देता है. यह इतना आसान है. हमारे कपड़ों में ऐसे शो बटन हैं, हम इसके नीचे वेल्क्रो या मैग्नेट छिपा कर लगाते हैं यह बड़ी ही आसानी से खुल और बंद हो जाता है. ऐसी जिप हैं, जिन्‍हें केवल एक उंगली से ऊपर-नीचे किया जा सकता है. पुरुषों, खासकर बुजुर्गों के लिए फ्लैप ओपनिंग वाली ड्रेसेज हैं. हम कपड़ों में जेबें ऐसी जगहों पर देते हैं कि आप बैठे हों या खड़े हों, यह आसानी से आपकी पहुंच में हों.”

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बसु और उनकी मां अमिता का काम अक्सर अलग-अलग प्रदर्शनियों में प्रदर्शित किया जाता है. सौमिता दास ने अपने ब्रांड का मंत्र समझाते हुए कहा,

“आपके कपड़े आप पर फिट होने के लिए हैं, आप अपने कपड़ों में फिट होने के लिए नहीं बने हैं.”

दिव्‍यागों के अधिकारों की वकालत करने वाली और एनजीओ एकांश ट्रस्ट की संस्थापक अनीता अय्यर नारायण के एकत्रित किए गए डिजाइन ऑनलाइन उपलब्ध हैं. उनके अनूठे ऑनलाइन कैटलॉग में देश भर के फैशन डिजाइन छात्रों द्वारा 52 सबमिशन के पूल से चुने गए दिव्‍यागों के अनुकूल ड्रेसों के 15 डिजाइन शामिल हैं. अनीता इस बारे में बताते हुए कहती हैं,

“ये बहुत ही सरल उपाय हैं. यदि कोई व्‍यक्ति आपकी देखभाल कर रहा है, तो हम ड्रेस में पीछे की ओर बटन लगा सकते हैं ताकि किसी के द्वारा आपको तैयार करने पर आपको शर्मिंदगी महसूस न हो. इसी तरह जिपर किनारे पर हो सकता है, ताकि हर किसी की गरिमा का सम्मान किया जा सके. तो हमारा कैटलॉग यही करने का इरादा रखता है, दिव्‍याग व्यक्ति और देखभाल करने वाले को विकल्प वापस देना और वे इसे कहीं भी तैयार करवा सकते हैं.”

कुछ डिजाइनर तो विशेष रूप से दिव्‍याग लोगों के लिए ही परिधान बनाते रहे हैं. डिजाइनर अंजू मोदी प्रत्येक ग्राहक की व्यक्तिगत जरूरतों के मुताबिक उनके लिए ऐसे कपड़े बनाती हैं, जो उनकी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुरूप होते हैं.

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अंजू और भारत के कुछ अन्य शीर्ष डिजाइनर तमन्‍ना स्कूल के सहयोग से हर साल फैशन डिजाइन काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक विशेष फैशन शो में भाग लेते हैं. इसका उद्देश्य फैशन में दिव्‍याग जन के प्रति अधिक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने के बारे में जागरूकता बढ़ाना है.

फैशन डिजाइनर अंजू मोदी ने कहा,

“मैं पिछले 7-8 वर्षों से तमन्ना (शिक्षा केंद्र) से जुड़ी हुई हूं. हर साल, हम एक नया कलेक्शन पेश करते हैं और हर साल हम एक विशेष बच्चे से जुड़कर खासतौर पर उसके लिए ड्रेस डिजाइन करते हैं. इन कामों की ज्‍यादा से ज्‍यादा चर्चा होनी चाहिए, ताकि और अधिक लोगों को इसमें शामिल किया जा सके.”

एडाप्टिव क्लोदिंग सिर्फ एक फैशन ट्रेड से कहीं बढ़कर है. यह समावेशिता और सशक्‍तीकरण की दिशा में एक परिवर्तनकारी बदलाव की निशानी है. आज जिस तरह से डिजाइनर, समर्थक और उपभोक्ता इस मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए एकजुट हो रहे हैं, उससे उम्मीद है कि फैशन का भविष्य और भी अधिक विविधतापूर्ण और सर्वसुलभ होगा.

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