ताज़ातरीन ख़बरें

खेलो इंडिया पैरा गेम्स: कोल्हापुर के स्वर्ण पदक विजेता स्वरूप ने पोलियो से संघर्ष को याद किया

बचपन से ही पोलियोग्रस्त महाराष्ट्र के पैरा-शूटर स्वरूप उन्हालकर ने खेलो इंडिया पैरा गेम्स 2023 में जीता स्वर्ण पदक

Published

on

नई दिल्ली: 8 सीरीज और 22 शॉट्स के बाद महाराष्ट्र के पैरा-शूटर स्वरूप उन्हालकर खेलो इंडिया पैरा गेम्स में पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 के फाइनल में हरियाणा के दीपक सैनी के खिलाफ एक अंक से पिछड़ गए. दो शॉट शेष रहते हुए स्वरूप का स्कोर 222.8 था, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी दीपक 223.8 अंकों के साथ आगे थे और स्वर्ण पदक जीतने के करीब थे. लेकिन हार मानना स्वरूप के स्वभाव में नहीं है.

गंभीर पोलियो के कारण दोनों पैरों में दिव्‍यांगता के कारण जन्मे स्वरूप एक जन्मजात योद्धा रहे हैं. 2 महीने से 10 साल की उम्र तक गंभीर स्थिति के कारण उन्हें कई ऑपरेशनों से गुजरना पड़ा.

बुधवार (13 दिसंबर) को खेलो इंडिया पैरा गेम्स 2023 के एक प्रशिक्षण सत्र के दौरान कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में, खेलो इंडिया पैरा गेम्स प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, स्वरूप ने कहा,

“मैंने कभी भी अपनी स्थिति को अपने सपनों को पूरा करने में बाधा नहीं बनने दिया।”

इसे भी पढ़ें: मिलिए भारत के पहले पुरुष ऑटिस्टिक मॉडल प्रणव बख्शी से

अपने चाचा को फुटबॉल खेलते देख महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर में पले-बढ़े स्वरूप को भी खेलों का शौक हो गया. उन्होंने बताया,

“बड़े होने के दौरान मुझे हमेशा खेलों में रुचि रही. मैं अक्सर अपने चाचा को प्रतिस्पर्धाओं में खेलते देखने के लिए स्टेडियम जाता था. उन्हें देखकर मेरे मन में भी खेलने की इच्छा जगी, लेकिन अपनी शारीरिक स्थिति के कारण मैं ऐसा नहीं कर सका. उस समय मुझे पैरा-स्पोर्ट्स के बारे में जानकारी नहीं थी.”

2008 में तत्‍कालीन जिला पैरालंपिक एसोसिएशन के प्रमुख अनिल पवार के साथ एक आकस्मिक मुलाकात स्वरूप को एक नए रास्ते पर ले गई.

उन्होंने याद करते हुए बताया,

“मैं कोल्हापुर के एक सरकारी संस्थान में पॉलिटेक्निक की क्‍लासेज लेने जाता था और वहां मेरा परिचय अनिल से हुआ. वह मेरे अच्‍छे दोस्त बन गए और उन्होंने मुझे पैरा-स्पोर्ट्स के बारे में जानकारी दी और इस तरह मेरी नई शुरुआत हुई. आखिरकार मुझे खेल खेलने के अपने सपने को पूरा करने का मौका मिला.”

स्वरूप के लिए अगला कदम यह तय करना था कि उन्‍हें किस खेल में हाथ आजमाना चाहिए. निशानेबाजी को अपने करियर विकल्प के रूप में चुनने से पहले उन्होंने लगभग हर चीज में हाथ आजमाया. इनमें शॉटपुट, डिस्कस थ्रो, जेवलिन थ्रो, एथलेटिक्स, पावर लिफ्टिंग और तीरंदाजी शामिल थे. उन्होंने कहा,

“मैंने अभिनव बिंद्रा सर और गगन नारंग सर, जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीते थे, से प्रेरित होकर 2008 में 21 साल की उम्र से शूटिंग शुरू की और 2012 में टूर्नामेंटों में प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेना शुरू कर दिया.”

इसे भी पढ़ें: स्पोर्टेबिलिटी दिव्यांगों के लिए खेल के मैदानों को समावेशी बना रही है

हालांकि एक और वजह ऐसी थी, जिसने उन्हें निशानेबाजी की ओर आकर्षित किया, वह यह था इस खेल तत्काल ही नतीजों का पता चल जाना. उन्होंने बताया,

“शॉट लगाने के साथ ही मैं अपना स्कोर स्क्रीन पर देख सकता था. मतलब यह कि मैं खेलने के साथ परिणाम देख सकता था, जिससे मुझे तुरंत ही अपने कौशल में सुधार लाने की सुविधा मिल रही थी.”

हालांकि प्रतिस्पर्धा में हिस्‍सा लेने का मौका मिलना तो स्वरूप की यात्रा की महज़ शुरुआत भर थी. अभी उन्हें अपने खेल के लिए फंडिंग जुटाने के साधनों का पता लगाना था. निशानेबाजी में इस्तेमाल होने वाले महंगे उपकरण खरीद पाना उनके परिवार की क्षमता के बाहर था. उनके माता-पिता पूजा सामग्री बेचने की एक छोटी सी दुकान चलाते थे , जिनके जल्द ही गुजर जाने से चीजें और भी मुश्किल हो गईं. उन्होंने बताया,

“क्योंकि हमारा परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, इसलिए मैंने शूटिंग की बात को लंबे समय तक अपने माता-पिता और परिवार से छिपाए रखने का फैसला किया. जब मैंने कुछ प्रतियोगिताओं में भाग लिया तो अखबारों में मेरा छपने से उन्‍हें इस बारे में पता चल गया. इसके बाद तो मुझे परिवार की ओर से भरपूर सहयोग और समर्थन मिलने लगा.”

शुरुआत में स्वरूप ने कोल्हापुर में म्युनिसिपल गवर्नमेंट रेंज से शूटिंग उपकरण उधार लिए जहां उन्होंने 2008 और 2016 के बीच प्रशिक्षण लिया था. 2014 में उन्हें अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए अमेरिका के अटलांटा जाने का अवसर मिला. पैसों का इंतजाम करने के लिए स्वरूप ने एक स्थानीय अखबार में विज्ञापन दिया. उसके बाद के घटनाक्रम को याद करते हुए उन्होंने कहा,

“क्लिपिंग से मुझे कुछ धनराशि प्राप्त करने में मदद मिली. मुझे अपने कुछ दोस्तों से भी मदद मिली. मेरे चाचा, जो एक पशुपालक हैं, ने मेरी मदद के लिए अपनी दो भैंसें बेच दीं.”

अपने खर्चों को और कम करने के लिए स्वरूप, जिनके पास उस समय कोई नौकरी नहीं थी, टूर्नामेंट शुरू होने से एक दिन पहले ही प्रतियोगिता स्थल पर पहुंचते थे और अगले दिन ही वापस लौट जाते थे.

इसे भी पढ़ें: राष्ट्रीय खेल पुरस्कार: पैरा एथलीट शीतल देवी और प्राची यादव को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया

2016 में, स्वरूप पुणे में गन्स फॉर ग्लोरी अकादमी का हिस्सा बन गए, जहां उन्हें अंतरराष्ट्रीय कोचिंग, आहार विशेषज्ञ, फिजियोथेरेपी आदि जैसी विभिन्न सुविधाएं मिलीं, जिससे उन्हें अपने खेल में बड़ा सुधार लाने का मौका मिला. इससे वह टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई करने में सफल रहे, लेकिन एक बार फिर पैसों का इंतजाम करने में दिक्कतों के कारण वह यह सोचने पर मजबूर हो गए कि क्या उन्हें निशानेबाजी करना छोड़ देना चाहिए? स्वरूप याद करते हुए बताते हैं,

“मुझे जिस तरह का संघर्ष करना पड़ा, उसके कई बार मैं हार मानने की मनोदशा में आ जाता था. पैरालंपिक से पहले, कुछ रातें ऐसी रहीं, जब मुझे लगने लगा कि शूटिंग में करियर जारी रखना बहुत मुश्किल है, इसलिए मुझे इसे छोड़ देना चाहिए.”

टोक्यो में चौथे स्थान पर रहे स्वरूप ने कहा,

“लेकिन कभी-कभी, आपका सपना ऐसा होता है कि वह आपको सोने नहीं देता. यह आपको अपनी यात्रा पूरी करने के लिए दृढ़ संकल्पित बनाए रखता है. अगर मैं रात में इसके बारे में सोचूं, तो मैं अगली सुबह जल्‍दी उठकर ट्रेनिंग सेशन के लिए पहुंच जाऊंगा. कुछ इसी तरह इस सपने ने मुझ पर कब्ज़ा कर लिया और यह मुझे कभी हार नहीं मानने देता.”

उसी सपने ने निश्चित रूप से स्वरूप को बुधवार (13 दिसंबर) को खेलो इंडिया पैरा गेम्स में हार नहीं मानने दी, क्योंकि उन्होंने अपने अंतिम दो शॉट्स में 10.7 और 10.3 का स्कोर किया और कुल 243.8 अंकों के साथ समाप्त किया. दूसरी ओर उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी दीपक इन दोनों शॉट्स में 9.7 और 9.4 अंक ही स्कोर कर सके और शुरुआती राउंड्स में बढ़त बनाने के बावजूद अंतत: उनका कुल स्कोर 242.9 अंक पर ही सिमट कर रह गया. इस तरह एक रोमांचक वापसी ने स्वरूप का नाम अपने पहले खेलो इंडिया स्वर्ण पदक के साथ रिकॉर्ड बुक में दर्ज करा दिया. अपनी इस स्वर्णिम सफलता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा,

“मेरे पास सभी के लिए केवल एक ही संदेश है – जीवन में कभी-कभी, आपको ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जो आपको हतोत्साहित करती हैं. लेकिन, इस मानसिकता से बाहर निकलकर आगे बढ़ना जरूरी है. यदि आप खुद को कभी हतोत्साहित महसूस करते हैं, तो हमेशा याद रखें कि अन्य लोग भी उतार-चढ़ाव से गुजरते हैं. आप अपने ऊपर इसका कितना असर होने देते हैं, यह आप पर निर्भर करता है.”

इसे भी पढ़ें: दृष्टिबाधित लोगों को सशक्त बनाने के मिशन पर अधिवक्ता टिफनी बरार

(यह स्‍टोरी एनडीटीवी स्टाफ द्वारा संपादित नहीं की गई है और इसे एक सिंडिकेटेड फीड के जरिये प्रकाशित किया गया है.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version