23 वर्षीय प्रणव बख्शी लैक्मे फैशन वीक में रैंप पर चलने के बाद ऑटिज्म से पीड़ित भारत के पहले मॉडल बन गए हैं, वो विश्वास और आत्म-विश्वास के साथ रूढ़िवादिता को चुनौती दे रहे हैं
एडिट: ऋतु वर्षा | December 29, 2023 Read In English
नई दिल्ली: “ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं है, यह एक कंडीशन है. ऑटिज्म मेरी सुपर पावर है, मैं इससे पीड़ित नहीं हूं,” यह कहना है 23 वर्षीय प्रणव बख्शी का जो हाल ही में लक्में फैशन वीक में रैंप पर चलने वाले भारत के पहले ऑटिज्म से पीड़ित मॉडल बन गए हैं. वर्तमान में थॉमसन रॉयटर्स के साथ एसोसिएट डिजिटल प्रोड्यूसर के रूप में काम कर रहे हैं बख्शी को लाइमलाइट, लाइट्स, कैमरा और एक्शन पसंद है! वह उत्साह से कहते हैं,
“मुझे कैमरे के सामने पोज देना पसंद है और मैं आइने के सामने पोज और एक्सप्रेशन देता हूं. मुझे रैंप पर चलना बहुत पसंद है क्योंकि इससे मुझे अच्छा महसूस होता है. मुझे इसमें जरा भी घबराहट महसूस नहीं होती.”
हालांकि, बख्शी की यह यात्रा आसान नहीं रही है, विशेषकर जब भीड़-भाड़ वाली जगहों पर बातचीत करने की बात आती है तो यह उनके लिए आसान नहीं होता. वह कहते हैं,
“मुझे कॉन्सर्ट, मॉल, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे जैसे भीड़-भाड़ वाले स्थान पसंद नहीं हैं. मैं भीड़ को नजरअंदाज करके स्थिति को संभालता हूं.”
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पेशे से फोनेटिक्स एजुकेटर प्रणव की मां अनुपमा बख्शी ने वर्षों से सीखने की वह प्रक्रिया ढूंढ ली है जो उनके बेटे के लिए काम करती है.
“मैंने केवल प्रणव को फॉलो किया था, इसलिए मैंने सिर्फ उसकी चुनौतियों को समझने की कोशिश की. वह हर जगह दयालु, बहुत खुश, प्रतिभाशाली और सहानुभूतिशील बच्चा है. मैं हर तरह की चीजें देखती हूं, लंबी यात्रा भी. लेकिन निःसंदेह, इन सबके पीछे ऑटिज्म है. उसका ऑटिज्म उसके जुनून और चिंताओं में प्रकट होता है. इसलिए, हमारे पास इसका मुकाबला करने के तंत्र मौजूद हैं. पहले उसके पास बहुत ही खराब समन्वय संबंधी समस्याएं थीं, अब उसे डेडलिफ्ट करना पसंद है, फिटनेस उसके लिए एक धर्म है.”
ऑटिज्म के बारे में बात करते हुए एक्शन फॉर ऑटिज्म की संस्थापक मैरी बरुआ कहती हैं,
“ऑटिस्टिक लोगों का दिमाग नॉन-ऑटिस्टिक लोगों की तुलना में अलग तरह से संचालित होता है. इसके चलते वे पर्यावरण को अलग तरह से समझते हैं और इसका परिणाम यह होता है कि जिस तरह से वे कम्युनिकेट करते हैं या कम्युनिकेशन को समझते हैं वह गैर-ऑटिस्टिक व्यक्ति से अलग होता है.”
ETHealthWorld की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 18 मिलियन लोग ऑटिज्म से पीड़ित हैं. यह समझना जरुरी है कि ऑटिज्म एक स्पेक्ट्रम डिसोर्डर है, जिसमें विभिन्न प्रकार की अभिव्यक्तियां शामिल हैं.
इस स्पेक्ट्रम पर विस्तार से बताते हुए, मेरी बरुआ कहती हैं,
“सामान्य आबादी की तरह, बुद्धि में भिन्नता वाले लोग भी होते हैं. ऑटिस्टिक लोगों में बुद्धि में समान प्रकार की भिन्नता होती है. जिस तरह से हम कोशिश करते हैं और देखते हैं, कि कोई व्यक्ति कितने स्वतंत्र रुप से काम करने में सक्षम हो सकता है? तो, हम उस पर गौर करते हैं कि कोई ऐसा व्यक्ति जो बहुत स्वतंत्र है और दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जिन्हें दिन-प्रतिदिन की अपनी सभी एक्टिविटीज और कई बार हर चीज में बहुत अधिक सहयोग की जरुरत होगी. तो लोग उस पूरे स्पेक्ट्रम में हैं.”
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ऑटिज्म से पीड़ित लोगों के इस व्यापक स्पेक्ट्रम को देखते हुए और अलग-अलग तरह की दिव्यांगताओं को ध्यान में रखते हुए, सबको शामिल करना वाला माहौल कैसा होना चाहिए?
समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए, विशेष रूप से ऑटिस्टिक व्यक्तियों के लिए बरुआ सहानुभूति और समझ के महत्व पर जोर देती हैं. वह कहती हैं,
“ऑटिस्टिक लोगों के लिए वातावरण को समावेशी बनाना उनके अनुभवों को समझने की कोशिश करना है. तो कुछ सरल चीजें हैं जैसे कभी-कभी उन्हें जानकारी प्रोसेस करने के लिए थोड़ा समय देना चाहिए क्योंकि वे हर समय बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं, आपको उन्हें उतना समय देना ही होगा.”
यह बहुत जरुरी है कि समावेशी स्थान हों क्योंकि जब तक आम जगहों पर लोग आ जा नहीं सकेंगे तब वो समाज में शामिल कैसे होंगे. जहां तक प्रणव बख्शी का सवाल है, वह बड़े सपने देख रहे हैं. वह दिल्ली से मुंबई आने की इच्छा रखते हैं, क्योंकि भारत की इकोनॉमिक और इंटरटेनमेंट राजधानी उन्हें अपने सभी अवसरों और संभावनाओं से आकर्षित करती है.
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समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.
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