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पोलियो पैरालिसिस से पावरहाउस तक: शिल्पा मेहता जैन की आसाधारण यात्रा
शिल्पा मेहता जैन को बचपन (दो महीने) में ही पोलियो हो गया था और वह 94 प्रतिशत पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम के साथ बड़ी हुईं
मुंबई की चार्टर्ड अकाउंटेंट शिल्पा मेहता जैन कहती हैं, ”यह बहुत ही रेयर है कि कोई दिव्यांग व्यक्ति किसी सामाजिक आलोचना के बिना जीवन यापन कर रहा हो.” एक दिव्यांग व्यक्ति के रूप में, जैन को भेदभाव के घृणित रूपों का सामना करना पड़ा है. लंगड़ी, विकलांग या बेचारी कहलाने से लेकर उन्होनें यह सब देखा और सुना है. 44 वर्ष की शिल्पा जब दो महीने की थीं तब उन्हें स्कोलियोसिस (पोलियो) का पता चला था और वह 94 प्रतिशत पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम के साथ बड़ी हुईं, जिससे उनके शरीर का दाहिना अंग प्रभावित हुआ.
वेदांता में उप मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ), निकेल, जैन को अपने परिवार से ज्यादा सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ा.
अपने शुरूआती समय को याद करते हुए, जैन ने कहा कि,
मैं परंपरागत मारवाड़ी समाज से आती हूं. इसलिए, लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी गई. मेरे जैसी लड़की, जिसे पोलियो था, जिसके पास जीवन में कुछ भी हासिल करने का कोई मौका नहीं था. लोग मेरे माता-पिता से सीधे-सीधे कहते थे कि मैं उन पर बोझ बन जाऊंगी. मेरे माता-पिता को बताया गया कि मेरी शादी करने के लिए उन्हें बहुत सारे पैसे की जरूरत हो सकती है क्योंकि मेरी दिव्यंगता के कारण कोई भी ‘सामान्य’ व्यक्ति मुझसे शादी करने के लिए सहमत नहीं होगा. पूरे बचपन ऐसी मानसिकता में रहना आसान नहीं था.
स्कूल में जैन ने प्रसिद्धि हासिल करने के रास्ते में अपनी शारीरिक बाधाओं को आड़े नहीं आने दिया. उन्होंने प्रश्नोत्तरी से लेकर भाषण प्रतियोगिताओं तक कई मानसिक कौशल प्रतियोगिताओं में भाग लिया और पुरस्कार हासिल किए.
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कॉर्पोरेट क्षेत्र में नाम कमाने के लिए आने वाली बाधाएं
जैन ने 2001 में द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) से चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई की और पहले ही प्रयास में सीए के सभी तीन लेवल्स को पार कर लिया. अन्य छात्रों की तरह, जैन भी अनुभव प्राप्त करने के लिए सीए आर्टिकलशिप (प्रैक्टिकल ट्रेनिंग प्रोग्राम) का चयन करना चाह रही थीं, लेकिन अच्छा एकेडमिक बैकग्राउंड होने के बावजूद कई कंपनियों ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया. अंत में, उनके पिता, शांतिलाल मेहता, जो कि एक व्यवसायी हैं, के द्वारा नामांकन के लिए आवेदन करने के बाद उन्हें आर्टिकलशिप प्राप्त हुई.
जैन ने 2004 में मास्टर्स इन मैनेजमेंट स्टडीज (एमएमएस) और 2005 में मास्टर ऑफ कॉमर्स (एम.कॉम) की पढ़ाई की. कोर्स पूरा करने के बाद, उन्होंने कैंपस इंटरव्यू में बैठने का फैसला किया, लेकिन इसमें सफल होना कठिन था.
मैं अपने बैच में सबसे क्वालिफाइड स्टूडेंट थी, लेकिन मुझे अपने कोर्स में पांचवें यानि अंतिम रैंक पर रखा गया था. प्लेसमेंट के पहले दिन, अधिकांश कंपनियों ने मेरा इंटरव्यू नहीं लिया और जिन्होंने इंटरव्यू लिया वह एक मिनट के अंदर ही समाप्त हो गया. दिन के अंत में, प्लेसमेंट कमिटी ने मुझे अपने पिता के बिजनेस में शामिल होने और फिर जॉब सर्च करने के लिए मनाने की कोशिश की. मैं इस फैक्ट को समझ ही नहीं पायी कि मेरी दिव्यांकता के कारण मुझे रिजेक्ट किया जा रहा है.
यह जैन के जीवन के सबसे बुरे समय में से एक था. शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन की दिशा बदलने का उनका विश्वास हिल गया. लेकिन उन्होंने इसे मजबूती से कायम रखा और एक-एक ईंट लगाकर गरिमापूर्ण जीवन बनाने के लिए कड़ी मेहनत करना जारी रखा.
व्यावसायिक सफलताएं और सम्मान
जैन पहले कई नेतृत्व पदों पर रह चुकी हैं. इसके अलावा, उन्होंने अपने पति दिलीप जैन के साथ dJED फाउंडेशन (नॉन-प्रोफिट फाउंडेशन) की सह-स्थापना की. यह ऑर्गेनाइजेशन महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान की ग्रामीण और आदिवासी आबादी को उद्यमिता और पर्यावरण के बारे में शिक्षित करने की दिशा में काम करता है.
2019 में, उन्हें अपने जीवन में बाधाओं को मात देने के लिए नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. जनवरी में, इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने जैन को उनकी व्यावसायिक उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया. उन्होंने 100 दिव्यांग लोगों को सीए की पढ़ाई के लिए आर्थिक रूप से सहायता करने का संकल्प लिया.
अपनी यात्रा को याद करते हुए, जैन ने कहा,
समाज का नजरिया ऐसा है कि जैसे ही दिव्यांगता शब्द उनके दिमाग में आता है, वे सोचते हैं कि हमें सहानुभूति की आवश्यकता है और हम एक सफल प्रोफेशनल लाइफ जीने में सक्षम नहीं हैं. वे दिव्यांगों को समान रूप से देखने और अन्य लोगों की तरह अपना जीवन जीने में असमर्थ हैं. हमें यह समझने की जरूरत है कि यह एक बुनियादी मुद्दा है. दिव्यांगता का मतलब दया करो, सहानुभूति करो लेकिन अवसर मत दो.
44 वर्षीय शिल्पा जी ने कहा कि भारत में उनके जैसे लाखों लोग हैं जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने और सम्मानजनक जीवन जीने के एक मौके के लिए तरस रहे हैं. जैन का एजेंडा दिव्यांग लोगों की मदद करना, उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करना है.
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