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स्पोर्टेबिलिटी दिव्यांगों के लिए खेल के मैदानों को समावेशी बना रही है
मई 2022 में, दिल्ली के एक को-एज्युकेशनल निजी स्कूल, मॉडर्न स्कूल ने दिव्यांगों के आने और खेलने के लिए खेल सुविधाएं, कोर्ट और मैदान उपलब्ध कराए
नई दिल्ली: सर्दियों की धूप में दौड़ने के लिए तैयार; 100 मीटर की दौड़ और खेल का एक मैदान जो सभी का स्वागत करता है. यह खेल मैदान नई दिल्ली के बाराखंभा रोड पर स्थित मॉडर्न स्कूल के सहयोग से उमोया स्पोर्ट्स द्वारा आयोजित एक समावेशी खेल महोत्सव को लेकर उत्साहित बच्चों से गुलजार है. इस एक दिवसीय कार्यक्रम ‘आगाज’ में 15 स्कूलों के 200 से अधिक बच्चों ने ट्रैक इवेंट, ब्लाइंड क्रिकेट और व्हीलचेयर फ्रिसबी आदि खेलों में भाग लिया.
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उमोया स्पोर्ट्स के संस्थापक और सीईओ आदित्य के.वी. सवाल पूछते हैं, “हममें से कितने लोग अपने खेल के मैदानों में दिव्यांग बच्चों को देख रहे हैं?” इसी प्रश्न के समाधान में जुटे आदित्य दिव्यांग बच्चों को बिना किसी रुकावट के खेलने में सहायता कर रहे हैं. वो कहते हैं,
“हमने स्पोर्टेबिलिटी के लिए मॉडर्न स्कूल के साथ साझेदारी की है. यह एक सुरक्षित स्थान है जो दिव्यांगों को उनकी आवाज के लिए एक मंच प्रदान करता है और जो न केवल मनोरंजक तौर पर बल्कि मुकाबले के रुप से भी खेल का अनुभव करते हैं. हमारे यहां जो बच्चे हैं वे कई तरह की अक्षमताओं से जूझ रहे हैं.”
स्पोर्टेबिलिटी सिर्फ इस एक दिवसीय आयोजन के बारे में नहीं है. मई 2022 में दिल्ली के मॉडर्न स्कूल ने दिव्यांगों के आने और खेलने के लिए अपनी खेल सुविधाएं, कोर्ट और मैदान उपलब्ध कराए. एक छोटे से कार्यक्रम के रूप में शुरू हुआ कार्यक्रम अब बढ़कर लगभग 100 लोगों तक पहुंच गया है जो इस परिसर का उपयोग करते हैं.
मॉडर्न स्कूल की ऑनरेरी सेक्रट्री, बोर्ड ऑफ ट्रस्टी अंबिका पंत का मानना है कि प्रत्येक स्कूल अपने परिसर को सभी आयु वर्ग के बच्चों के लिए समावेशी और उपलब्ध बना सकता है. वह कहती हैं,
“गाजियाबाद और नोएडा सहित दूर-दराज के इलाकों से लोग मॉडर्न स्कूल आते हैं. इतनी दूरी तय करने में उनकी व्हीलचेयर और अन्य उपकरणों पर उन्हें भारी रकम खर्च करनी पड़ती है. स्कूल पूरे देश में फैले हुए हैं और देखा जाए तो प्रत्येक स्कूल ऐसा कर सकता है यदि वे अपनी जगह को इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं तो वे बिना किसी लंबी दूरी तय किए अपने पड़ोस के स्कूल में खेलने जा सकते हैं. ”
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यह सिर्फ बच्चे नहीं हैं, जो यहां खेलने के लिए आते हैं. शिव कुमार उत्तरी दिल्ली के मुखर्जी नगर से नियमित रूप से ब्लाइंड क्रिकेट खेलने के लिए यहां आते हैं. शिव कुमार की तरह ही कई अन्य खेल प्रेमी भी इसे अपनी खेलने की अपनी इच्छा पूरी करने के लिए एक सुरक्षित स्थान मानते हैं.
विश्व रैंकिंग में 72वें स्थान पर मौजूद टेबल टेनिस खिलाड़ी सोनू गुप्ता ने साझा किया,
“सबसे अच्छी बात यह है कि हमें यहां खेलने से कोई रोकता नहीं है. जैसे कि जब हम क्रिकेट खेलते हैं तो हमें यह नहीं बोलता कि व्हीलचेयर के कारण पिच खराब हो जाएगी. लेकिन अगर हम किसी दूसरे मैदान पर खेलने जाते हैं तो वहां हमें खेलने की इजाजत नहीं मिलती. यही कारण है कि हम यहां खेलने आते हैं.”
एक समावेशी वातावरण – न केवल भौतिक स्थान के संदर्भ में बल्कि सीखने और विकास के संदर्भ में भी, बनाने के बारे में बात करते हुए एक पेरेंट राधा गिडवानी ने कहा,
“अगर मेरी बच्ची तैराकी करना चाहती है, तो उसे क्यों रोका जाना चाहिए? क्योंकि वो दिव्यांग है और एक विशेष आवाश्यकताओं वाली बच्ची है? आप इन बच्चों के लिए ट्रेनर क्यों नहीं रख सकते? क्या आप इस बात को नहीं समझते कि इन बच्चों की जरुरतों को दूसरे बच्चों के साथ जोड़ा जा सकता है? इसी प्रकार, हमें विशेष आवश्यकताओं के लिए एक विशिष्ट खेल के मैदान की आवश्यकता क्यों है? ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि ये बच्चे दूसरे बच्चों के साथ मिलें और इस बात को महसूस करें कि वे भी इस समाज का ही हिस्सा हैं?”
भारत में इंक्लूसिव प्ले ग्राउंड्स और स्पोर्ट्स फैसिलिटी अभी भी अपना आदर्श रुप नहीं बना पाई हैं. इन्हें ज्यादा सरल होना चाहिए और दिव्यांगों के लिए इन्हें उपलब्ध कराने में किसी खास डिजाइन की जरुरत नहीं है. इसे बस थोड़ी समझ और जगह की जरूरत है.
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