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सेरेब्रल पाल्सी से लड़ते हुए कामयाबी की नई कहानी लिख रहा है यह गणितज्ञ

गणितज्ञ (Mathematician) अक्षांश का जन्म सेरेब्रल पाल्सी के साथ हुआ था, जिसकी वजह से उनके शरीर का अधिकांश हिस्सा निष्क्रिय हो गया

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मौजूदा समय में वह पिलानी में सीएसआईआर-सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसआईआर-सीईईआरआई) वैज्ञानिक हैं. इसके अलावा, वह छात्रों को उनके रिसर्च वर्क में मार्गदर्शन भी देते हैं.

नई दिल्ली: क्या यह स्टीफन हॉकिंग (Stephen Hawking) का पुनर्जन्म है! अक्षांश गुप्ता की कहानी सुनने के बाद आपको भी शायद ऐसा ही लगे. एक गणितज्ञ (Mathematician) अक्षांश का जन्म सेरेब्रल पाल्सी के साथ हुआ था. मस्तिष्क और मांसपेशियों से जुड़ी इस समस्या की वजह से उनके शरीर का ज्यादातर हिस्सा निष्क्रिय (Dysfunctional) हो गया. अक्षांश अपने बारे में बताते हुए कहते हैं,

मेरी हालत काफी गंभीर थी. मैं ठीक से सुन नहीं पाता था और अक्सर स्कूल में लंबे समय तक खुद को एक ही जगह पर बैठा हुआ पाता. अपनी इस स्थिति की वजह से मैं खुद को दूसरों से अलग-थलग महसूस करता था. इसके बावजूद, मेरी मां ने मुझे एक रेगुलर स्कूल में एडमिशन दिलाने का फैसला किया.

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अक्षांश के गणित (Mathematics) और विज्ञान (Science) के प्रति विशेष लगाव ने उन्हें टेक्नोलॉजी में मास्टर्स और PhD सहित कुछ टॉप की डिग्रियां दिलाई. उन्होंने 14 प्रकाशन भी लिखे हैं. वह कहते हैं,

मैं गणित में अच्छा था, लेकिन मेरे टीचर मुझ पर संदेह करते थे. उन्हें ही नहीं मेरे आस-पास मौजूद कई लोगों को मेरी क्षमताओं पर संदेह था. फिर 10वीं क्लास में मैंने दूसरा स्थान हासिल किया. मैं जानता था कि केवल अपने काम और मेहनत से ही मैं उनके इस संदेह को दूर कर सकता हूं. लेकिन मैं यह अपने परिवार की मदद के बिना नहीं कर सकता था.

ये तो बस शुरुआत थी. अक्षांश ने आगे की पढ़ाई में अपनी आउटस्टैंडिंग एकेडमिक परफॉर्मेंस के जरिए दिव्यांग लोगों की काबिलियत को लेकर लोगों के मन में जो पूर्वाग्रह हैं, उन्हें तोड़ा.

अक्षांश दिव्यांग बच्चों के लिए अलग स्कूल बनाए जाने के भी खिलाफ हैं. वह कहते हैं,

अगर आप अपने बच्चे को रेगुलर स्कूल में भेजेंगे, तो दूसरे स्टूडेंट्स को भी पता चलेगा कि ऐसी समस्याएं मौजूद हैं.

प्यार से ‘बंटी दादा’ के नाम से मशहूर अक्षांश कहते हैं कि उनके जीवन का सबसे यादगार पल वह है जब उन्हें JNU के वाइस चांसलर ने PhD से सम्मानित किया था. ‘जब मैं डिग्री लेने के लिए पोडियम पर गया, तो मेरी आंखें भर आईं.’

अपनी PhD पूरी करने के बाद, उन्हें जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में एक टेम्परेरी रिसर्च एसोसिएट की नौकरी ऑफर की गई, जहां उन्होंने पांच साल तक काम किया.

वर्तमान में, वह पिलानी में CSIR-सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSIR-CEERI) में वैज्ञानिक (Scientist) हैं. इसके अलावा, वह स्टूडेंट्स को उनके रिसर्च वर्क में मार्गदर्शन भी देते हैं.

हम सिर्फ दूसरों से मदद नहीं लेते हैं, हम दूसरों की मदद भी कर सकते हैं.

दो नर्सों की मदद से अक्षांश अपने हर दिन की शुरुआत सकारात्मक तरीके से करते हैं.

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