डिस्कस थ्रो, पैरा-एथलेटिक्स
26 वर्षीय योगेश कथुनिया ने एशियाई पैरा गेम्स 2023 में पुरुषों के (चक्का फेंक) डिस्कस थ्रो F54/55/56 फाइनल में रजत पदक जीतकर एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की. 3 मार्च 1997 को जन्मे भारतीय पैरालंपिक एथलीट योगेश कथूनिया डिस्कस थ्रो में महारत रखते हैं. महज नौ साल की उम्र में योगेश गुइलेन-बैरी सिंड्रोम नामक एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी की चपेट में आ गए थे. इसके कारण क्वाड्रिपेरेसिस (एक ऐसी स्थिति जिसमें प्रभावित व्यक्ति के सभी हाथ-पैरों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं) की समस्या उत्पन्न हो जाती है. इस बीमारी के कारण उनका बचपन व्हीलचेयर तक सीमित होकर रह गया, फिजियोथेरेपी ही उसके लिए इकलौती उम्मीद की किरण थी. उधर, योगेश की मां मीना देवी अपने बच्चे को अपने पैरों पर खड़ा करने और चलने में हर तरह की मदद को तत्परता के साथ तैयार खड़ी थीं. बेटे की मदद करने के लिए उन्होंने खुद फिजियोथेरेपी सीखी और उनके लगातार प्रयासों से योगेश तीन साल के भीतर ही फिर से चलने में सक्षम हो गए.
योगेश ने अपना ध्यान पैरा खेलों की ओर 2017 में लगाया, जब एक साथी ने उन्हें पैरा एथलीटों के वीडियो दिखाकर पैरा स्पोर्ट्स को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने असाधारण प्रयासों और दृढ़ संकल्प के दम पर योगेश आज अपनी एक अलग पहचान और नाम बना चुके हैं. पैरा एथलेटिक्स में उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए 2021 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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