बचपन में योगेश के शरीर में गुलियन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barré syndrome) नाम के एक दुर्लभ ऑटोइम्यून डिसऑर्डर का पता चला था
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पेरिस में सिल्वर को गोल्ड मेडल में बदलने के लिए योगेश कथुनिया कर रहे हैं जी-तोड़ मेहनत

हरियाणा के 27 साल के इस खिलाड़ी ने सोमवार को जापान के कोबे (Kobe) में वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पुरुषों की F56 कैटेगरी डिस्कस थ्रो में 41.80 मीटर के थ्रो के साथ सिल्वर मेडल हासिल किया

Press Trust Of India | May 23, 2024 Read In English

नई दिल्ली: तब तक व्हीलचेयर योगेश कथुनिया के लिए एक आकर्षण की चीज थी, जब तक उन्हें अपने शरीर में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barré syndrome) नाम के एक दुर्लभ ऑटोइम्यून डिसऑर्डर का पता नहीं चला था. 9 साल की छोटी सी उम्र में उन्हें इसके बारे में पता चला. डॉक्टरों ने उनसे कहा कि वह अब फिर कभी अपने पैरों पर चल नहीं पाएंगे और जल्द ही उन्हें व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा. योगेश की बहन पूजा ने एक बार कहा था,

“छोटी उम्र होने की वजह से योगेश को नहीं पता था कि व्हीलचेयर का इस्तेमाल क्यों किया जाता है. जब भी वह इसे देखता, तो मां से कहता कि उसे वह ‘रिक्शा’ चाहिए और फिर वास्तव में उसे वह रिक्शा मिल गया.”

लेकिन तीन साल के अंदर योगेश ने एक बार फिर से चलना शुरू कर दिया, इसका श्रेय उनकी मां मीना देवी (Meena Devi) को जाता है, जिन्होंने अपने बेटे के इलाज के लिए खुद फिजियोथेरेपी सीखी.

योगेश ने जल्द ही उत्साह के साथ खेल खेलना शुरू कर दिया और उन्हें पैरा डिस्कस थ्रो में अपनी पहचान मिल गई.

हरियाणा के इस 27 साल के खिलाड़ी ने सोमवार को जापान के कोबे में विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पुरुषों की F56 श्रेणी डिस्कस थ्रो में 41.80 मीटर के थ्रो के साथ सिल्वर मेडल (Silver medal) हासिल किया. योगेश ने पीटीआई को बताया,

“जब मैं उन दिनों के बारे में सोचता हूं, तो आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. लेकिन मैं भाग्यशाली था कि मैं उन 1% लोगों में से था, जो चलने में सक्षम थे. अभी भी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (neurological disorder) की बहुत सारी समस्याएं हैं, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है. मैं दोनों पैरों में AFO (ankle-foot orthosis) की मदद लेकर चलता हूं, लेकिन मैं लंबे समय तक नहीं चल सकता. GB सिंड्रोम (Guillain-Barré syndrome) में मांसपेशियां तेजी से नष्ट होने लगती हैं, इसलिए मुझे इस स्थिति से निपटने के लिए अच्छा खाना और नियमित तौर पर वर्कआउट करने की जरूरत पड़ती है. लेकिन मैं यह सब सोचकर खुद को प्रेरित महसूस करता हूं कि मैं देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं.”

जापान में सिल्वर मेडल पाना उनके लिए बहुत जरूरी था, क्योंकि इससे पैरालंपिक के लिए उनका स्थान पक्का हो गया था, लेकिन योगेश एक बार फिर दूसरे स्थान पर आने से खुश नहीं हैं और कहते हैं कि अब पेरिस में गोल्ड मेडल जीतना उनके लिए एक निजी लड़ाई (personal fight) बन गई है.

योगेश ने जापान में एक बार फिर दूसरा स्थान हासिल करने से पहले टोक्यो पैरालिंपिक, 2023 की पेरिस पैरा वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप और एशियाई पैरा गेम्स में भी सिल्वर मेडल जीता था.

उन्होंने कहा,

“मैं अब गोल्ड मेडल जीतने के लिए बेताब हूं. यह मेरे लिए अब निजी लड़ाई बन चुकी है.’ मैं बस सिल्वर मेडल इकट्ठा कर रहा हूं. मैं सिल्वर मेडल जीतने और हर बार दूसरे स्थान पर आने से तंग आ गया हूं. अब मुझे एक और सिल्वर मेडल नहीं चाहिए. मैं कड़ी मेहनत करूंगा, मैं घर नहीं जाऊंगा. मैं बस यही उम्मीद करता हूं कि मैं अगले 100 दिनों तक फिट रहूं.”

F56 केटेगरी उन एथलीटों के लिए है, जो मैदानी स्पर्धाओं में बैठकर प्रतिस्पर्धा करते हैं. इस कैटेगिरी में अलग-अलग एथलीट प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिनमें अंग-विच्छेदन (amputation) और रीढ़ की हड्डी की चोट (spinal cord injuries) वाले एथलीट भी शामिल होते हैं.

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हालांकि, सोमवार को योगेश को तब झटका लगा, जब उन्हें अपने कम्पटीशन वाले दिन कोबे में नए फाउल नियमों (foul rules) के बारे में पता चला. योगेश ने कहा,

“केवल दो खिलाड़ी थे, जिन्होंने 40 मीटर से ऊपर हिट किया (गोल्ड विजेता क्लॉडनी बतिस्ता डॉस सैंटोस (Claudiney Batista Dos Santos) और दूसरे वो खुद. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि बहुत सारे नए सख्त नियम बनाए गए थे. यदि आप थोड़ा-सा भी हिलते हैं, तो आपको हिप फाउल (hip foul) मिल जाता है.”

सीटेड थ्रो स्पर्धाओं (seated throw events) में, एथलीटों को कस्टम-मेड थ्रोइंग फ्रेम पर बैठकर छह मिनट में छह थ्रो करने होते हैं. ये फ्रेम स्ट्रैप के जरिए सिक्योर किए जाते हैं. एथलीट खुद को फ्रेम में सुरक्षित करने के लिए स्ट्रैप का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि नाभि के नीचे कोई भी मूवमेंट होने पर जजों की तरफ से फाउल अनाउंस किया जा सकता है.

“मेरी तैयारी बहुत अच्छी थी, लेकिन जब मैंने वार्म-अप शुरू किया, तो उन्होंने कहा कि मैं फाउल कर रहा हूं. इसलिए मैंने उस पर एक और बेल्ट लगाई, लेकिन मैंने पांच बेल्ट के साथ कभी अभ्यास नहीं किया था, इसलिए इससे मेरी तकनीक पर असर पड़ा. लेकिन मैं बहुत खुश हूं कि अब मुझे कोई ट्रायल देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि PCI (भारतीय पैरालंपिक समिति) ने कहा है कि जो भी यहां मेडल लाएगा, उसका स्थान पैरालिंपिक के लिए सुरक्षित हो जाएगा. और इसलिए अब मैं पूरी तरह से पेरिस पर अपना फोकस कर सकता हूं.”

योगेश ने कहा कि उन्हें नए नियमों के मुताबिक खुद को ढालना होगा, ताकि पेरिस में उनसे कोई फाउल न होने पाए.

”मैं अपने प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं हूं. अब मुझे पेरिस में ज्यादा सतर्क रहना होगा. मुझे खुद से फाउल होने से रोकना होगा. अभी मेरे पास 3 महीने हैं, इसलिए मैं इस इश्यू को फिक्स कर सकता हूं. यदि आप मेरी तकनीक (technique) देखें, तो मैंने सीटेड थ्रो में अपना अब तक का हाई स्कोर (48.34 मीटर) हासिल किया है. इसका मतलब है कि तकनीकी रूप से, मैं ठीक हूं. लेकिन फाउल होने से रोकने के लिए मुझे कई तकनीकी बदलाव करने होंगे. मुझे अपनी ताकत, सहनशक्ति और लचीलेपन (flexibility) पर भी बहुत काम करना होगा.”

पिछले साल, चिकन पॉक्स (chicken pox) से पीड़ित होने के वजह से योगेश ठीक से प्रैक्टिस नहीं कर पाए थे. उन्हें काफी समय बिस्तर पर रहना पड़ा. लेकिन जब वह ठीक हुए और विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप और एशियाई पैरा खेलों को ध्यान में रखते हुए फिर से ट्रेनिंग शुरू की, तो उन्हें अपनी गर्दन में दर्द महसूस हुआ. जांच कराने पर पता चला कि उन्हें सर्वाइकल रेडीकुलोपैथी (cervical radiculopathy) है.

“चिकन पॉक्स से रिकवर होने के बाद मैंने बहुत मेहनत की, लेकिन मुझे भारत के लिए कोटा (quota) और मेडल लाना था. इसलिए मैं इन दो प्रमुख प्रतियोगिताओं को मिस नहीं करना चाहता था. इस वजह से मैंने चोट के बावजूद खेला. इसके बाद मैं रिहैब (rehab) गया और अब मैं बिल्कुल फिट हूं.’ मैं पेरिस पैरालंपिक (Paris Paralympics) से पहले कुछ और प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लूंगा.”

योगेश ने स्पोर्ट और परफॉर्मेंस साइकोलॉजिस्ट नानकी जे. चड्ढा (Nanaki J. Chadha) की सर्विसेज भी ली हैं. उनके साथ किए सेशन योगेश के लिए बहुत मददगार रहे हैं.

“मैंने एक महीने पहले साइकोलॉजिस्ट नानकी चड्ढा मैडम को हायर किया था. मैं हफ्ते में दो बार उनसे सेशन लेता हूं. टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) के दौरान भी वह मेरी मानसिक प्रशिक्षक (mental trainer) थीं. लेकिन बीच में, मैं पंचकुला में अपनी अकेडमी में था, इसलिए उस दौरान हम बात नहीं कर सके. मुझे लगता है कि मैं अब मानसिक तौर पर काफी मजबूत हूं.”

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(यह कहानी एनडीटीवी स्टाफ द्वारा संपादित नहीं की गई है और एक सिंडिकेटेड फ़ीड से प्रकाशित हुई है।)

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