प्रेरक कहानियां

स्प्लिट स्पाइन से लेकर स्टैंड-अप कॉमेडी तक, जानिए श्वेता मन्त्री का सफर

36 साल की श्वेता मन्त्री (Sweta Mantrii) दिव्यांगों के अधिकारों की वकालत करने के लिए कॉमेडी का सहारा लेती हैं. वह स्पाइना बिफिडा (Spina Bifida) नाम के एक बीमारी के साथ पैदा हुई थी. यह एक ऐसी कंडीशन है जो रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करती है

द्वारा: आस्था आहूजा | एडिट: श्रुति कोहली | May 9, 2024 Read In English

नई दिल्ली: श्वेता मन्त्री कहती हैं, “यदि आपको मेरी बैसाखियों (crutches) को देखकर अजीब लगता है, तो आप उन्हें उसी तरह अनदेखा कर सकते हैं जैसे आपका क्रश (crush) आपको करता है.” स्प्लिट स्पाइन बीमारी आमतौर पर किसी के लिए भी आगे बढ़ने में एक रुकावट बन सकती है. लेकिन श्वेता ने अपनी इसी कमजोरी को कॉमेडी में बदल दिया. वह सबको साथ लेकर चलने का संदेश देने के लिए अपनी डिसेबिलिटी के बारे में जोक्स बनाकर सुनाती है.

हालांकि उनके कुछ जोक्स (jokes) डार्क लग सकते हैं, लेकिन वो उनके समानता के नजरिए को दर्शाते हैं.

वे कहती हैं,

“मेरे जोक्स दर्शकों को उन विषयों और मुद्दों पर हंसने में मदद करते हैं, जिनके बारे में आमतौर पर बात नहीं की जाती है.”

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श्वेता का जन्म स्प्लिट स्पाइन, जिसे स्पाइना बिफिडा कहते हैं, के साथ हुआ था. जिसकी वजह से वह लकवाग्रस्त (paralysed) हो गई थीं. जब वो केवल चार महीने की थीं, उन्हें सर्जरी से गुजरना पड़ा और उसके बाद कई फिजियोथेरेपी सेशन किए गए. जिसकी वजह से वो क्लिपर और बैसाखी की मदद से चलने के काबिल हो पाईं.

पुणे की रहने वाली श्वेता पुरानी बातें याद करते हुए कहती हैं,

“डॉक्टरों ने कहा था कि मैं दो महीने से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाऊंगी और अगर बच भी गई, तो 10 साल की उम्र तक चल नहीं पाऊंगी.”

हालांकि, उन्होंने पांच साल की उम्र में चलना और आठ साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू कर दिया था. उन्होंने कहा,

“टीचर्स अक्सर मुझे खेलने के बजाय क्लास के पास एक बेंच पर बैठने के लिए कहते थे. जिसकी वजह से मुझे ऐसा लगा जैसे कि मेरे अंदर कुछ गड़बड़ है.”

लेकिन ये भेदभावपूर्ण रवैया भी श्वेता को आगे बढ़ने से कभी रोक नहीं पाया. उन्होंने पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद मुंबई में जॉब हासिल कर ली.

“डिसेबिलिटी के साथ, जो डिसएडवांटेज आता है वो है एक्सेसिबिलिटी की कमी. जब मैं अपनी जॉब के लिए मुंबई शिफ्ट हुई, तो मुझे लिफ्ट वाला हॉस्टल ढूंढने में दो महीने लग गए.”

मनोवैज्ञानिक (psychological) और शरीर से जुड़ी इन बाधाओं ने श्वेता को दिव्‍यांगता अधिकारों की वकालत करने के लिए प्रेरित किया.

श्वेता ने सोशल मीडिया पर जागरूकता अभियान (awareness campaigns) चलाकर इसकी शुरुआत की. जब कॉमेडी गिग्स के लिए उनसे कॉन्टेक्ट किया गया, तो उनका पहला सवाल पैसे के बारे में नहीं था. उनका पहला सवाल था कि वेन्यू (venue) एक्सेसिबल है या नहीं.

श्वेता कहती हैं,

”मैं एक ऐसी दुनिया में रहना चाहती हूं जहां सबको बराबर समझा जाए.”

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इस पहल के बारे में

समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्‍यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.

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