ताजा खबरों से रूबरू कराने से लेकर रोजमर्रा के कामों तक टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन को काफी आसान बना दिया है. हालांकि, यह सहूलियतें सबके लिए समान नहीं हैं. विशेषकर, दिव्यांग लोगों के लिए. टेक्नोलॉजी के स्तर पर इस असमानता को ही डिजिटल एक्सेसिबिलिटी कहा जाता है. वर्ल्ड वाइड वेब कंसोर्टियम (W3C) के सलाहकार बोर्ड के लिए चुने गए पहले दृष्टिबाधित भारतीय अवनीश सिंह ने इन बातों पर बातचीत में हमें बताया डिजिटल एक्सेसिबिलिटी क्या है
एडिट: ऋतु वर्षा | December 1, 2023 Read In English
नई दिल्ली: टेक्नोलॉजी ने जीवन को आसान बना दिया है. जाने-अनजाने हम ऐप्स, टूल और उपकरण, जिनका उपयोग हम इंटरनेट पर समाचार जानने, काम करने, संचार और अपने दैनिक जीवन को सहूलियत से चलाने के लिए करते हैं. हालांकि यह बात यह सभी लोगों के लिए समान रूप से लागू नहीं होती. क्योंकि, दिव्यांग लोगों के लिए पहुंच में सुधार के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और तकनीकी टूल्स को और अनुकूल बनाने की आवश्यकता है.
डिजिटल एक्सेसबिलिटी यानी डिजिटल समावेशिता के मामले में भिन्न क्षमताओं वाले लोगों (दिव्यांगों) के लिए इस टेक्नोलॉजी की पहुंच को समान रूप से उपलब्ध कराने पर ध्यान देने की जरूरत है. हुंडई के सहयोग से ‘समर्थ’ ने डिजिटल एक्सेसबिलिटी के दायरे की पड़ताल करने की एक ऐसी ही कोशिश की है.
वर्ल्ड वाइड वेब कंसोर्सियम (W3C) एक संगठन है, जो वर्ल्ड वाइड वेब यानी इंटरनेट के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक निर्धारित करता है. एनडीटीवी ने वर्ल्ड वाइड वेब कंसोर्सियम (W3C) के सलाहकार बोर्ड में चुने गए पहले दृष्टिबाधित भारतीय अवनीश सिंह से इस बारे में बातचीत की. अवनीश प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपने 17 वर्षों के अनुभव के आधार पर दिव्यांग लोगों के लिए सूचना और ज्ञान को सुलभ बनाने की रणनीति पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा,
“एक एक्सेसबल वेबसाइट एक ऐसी वेबसाइट है, जो दिव्यांग व्यक्तियों के लिए आसानी से सुलभ हो. एक सुलभ वेबसाइट कोई विशेष वेबसाइट नहीं है. यह अन्य वेबसाइटों की तरह ही HTML, CSS कोड और जावा स्क्रिप्ट का इस्तेमाल करके बनाई जाती है. एक्सेसबल वेबसाइट की खासियत यह है कि इसमें टेक्स्ट कंटेंट यानी लिखित सामग्री को वॉयस यानी आवाज में बदलने का फीचर होता है.”
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दिव्यांगताएं केवल जन्मजात नहीं होतीं. कई बार दुर्घटना या बीमारी दिव्यांगता का कारण बन सकती हैं. इसके अलावा उम्र के साथ भी देखने, सुनने, बोलने और चलने-फिरने की क्षमता में कमी आ सकती है. भारत में 2.2% से अधिक आबादी दिव्यांग है, जिन्हें सुलभ वेबसाइटों और ऐप्स की आवश्यकता है. एक्सेसबिलिटी यह सुनिश्चित करती है कि दिव्यांग लोग डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग कर सकें.
अवनीश सिंह के मुताबिक,
“भारत में 90% से अधिक वेबसाइटें दिव्यांग लोगों के लिए एक्सेसबल नहीं हैं. यूरोप और अमेरिका में मजबूत कानूनी ढांचे के कारण स्थिति काफी बेहतर है. अमेरिका में संघीय सरकार का नियम यह कहता है कि यदि कोई विश्वविद्यालय या संघीय एजेंसी सरकार से धन प्राप्त कर रही है, तो उनके सभी उत्पाद और सेवाएं 100% एक्सेसबल होनी चाहिए. यही कारण है कि एक्सेसबल वेबसाइटों के मामले में ये देश काफी आगे हैं और भारत बहुत पीछे है.”
शोध डेटा से पता चलता है कि दिव्यांग लोगों की दुनिया की कुल आबादी तकरीबन 1.3 बिलियन है और इन लोगों के परिवारों और दोस्तों के पास खर्च करने योग्य आय 6 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की राशि उपलब्ध है. इसलिए, डिजिटल पहुंच को प्राथमिकता देने से न केवल समावेशिता (इन्क्लूसिविटी) को बढ़ावा मिलता है, बल्कि इससे आर्थिक लाभ भी मिलता है. इसमें वेब के साथ बातचीत करने के लिए दिव्यांग लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न तकनीकों और उपकरणों के माध्यम से मददगार तकनीकों को मजबूत बनाने का आह्वान किया गया है. इन तकनीकों में वेब ब्राउजर सेटिंग्स, टेक्स्ट-टू-स्पीच, आवाज की पहचान (वॉयस रिकग्निशन), ब्रेल कंप्यूटर व कीबोर्ड, हेड एंड आई मूमेंट इनपुट टूल जैसी चीजें शामिल हैं.
W3C के सलाहकार अवनीश सिंह कहते हैं,
“कई भारतीय कंपनियां एक्सेसबल वेबसाइटें, सुलभ पुस्तकें और पब्लिकेशन बना रही हैं और उन्हें भारत के बाहर अन्य कंपनियों को निर्यात भी करती हैं. ज्ञान की कोई कमी नहीं है, लेकिन इच्छाशक्ति और जागरूकता की कमी है. जागरूकता पैदा करना महत्वपूर्ण है. साथ ही नीतिगत कदम उठाए जाने की भी जरूरत है.”
ऐप्स और वेबसाइटों में दिव्यांगों को सशक्त बनाने की अपार संभावनाएं हैं. फिर भी, अगर उन्हें दिव्यांग व्यक्तियों को ध्यान में रखकर नहीं बनाया जाता, तो शारीरिक बाधाओं की तरह ही उनके बौद्धिक विकास में भी ऐसी बाधाएं बनी रह सकती हैं, जिनका वे अपनी आम जिंदगी में सामना करते हैं.
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समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.
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