राष्ट्रीय पदक जीतने से लेकर अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भारत का प्रतिनिधित्व करने तक, सुवर्णा राज ने दिखाया है कि दिव्यांगता शारीरिक से ज्यादा मानसिक है. एक पैरा-एथलीट और एक्सेसिबिलिटी एडवोकेट दूसरों को अपने सपनों को हासिल करने के लिए प्रेरित कर रही हैं
द्वारा: देवयानी मदैइक | एडिट: श्रुति कोहली | April 22, 2024 हिन्दी में पढ़े
नई दिल्ली: सरप्राइज से भरी जिंदगी. अगर आपको उसकी कहानी का वर्णन एक लाइन में करना है, तो ऐसे ही करना होगा. लोग अकसर शादी कर लेते हैं, लेकिन सुवर्णा राज के लिए यह एक बड़ा सरप्राइज था. इससे भी बड़ा सरप्राइज एक खिलाड़ी बनना और हर खेल में पदक जीतना था! सुवर्णा पोलियो के बाद के अपने जीवन को याद करते हुए कहती हैं,
मेरे पैर बिल्कुल लटक गए थे.
वह दो साल की थी, जब पोलियो के कारण उनके दोनों पैर बेकार हो गए. इससे उनकी कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया. वर्षों तक, सुवर्णा अपने घर पर ही बैठी रही और इस दौरान उनका कई बार इलाज हुआ.
उनका बचपन अस्पताल और क्लिनिक आने जाने में ही बीत गया . उनके माता-पिता ने अपरंपरागत तरीके आजमाए, जिनमें से कई में उन्हें गर्दन तक जमीन में गाड़ दिया गया. कभी बिजली के झटके दिए गए! इन सबके बीच, एक गहरा दर्द था – उसके पिता की अस्वीकृति. अपनी बेटी की दिव्यांगता का बोझ सहन करने में असमर्थ, वह अक्सर कहते थे,
मुझ से दूर रहो!
वह लगभग छह साल की थी, जब उसे दिव्यांग बच्चों के लिए बने छात्रावास में भर्ती कराया गया था.
मैंने पहली से 10वीं कक्षा तक अपने एकेडमिक साल विभिन्न होस्टल की दीवारों के अंदर सीमित रहकर ही बिताए. इस दौरान मैं पढ़ाई, साथी छात्रों के साथ जुड़ने और डिसेबिलिटी का सामना कर रहे अन्य बच्चों के साथ सहानुभूति रखने के लिए समर्पित थे.
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ग्रेजुएशन तक लोगों की घूरती निगाहें और फुसफुसाहटें उनका पीछा करती रहीं. लेकिन सुवर्णा ने जेल के इस जीवन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कॉमर्स और एजुकेशन में बैचलर्स की डिग्री हासिल की.
कुल मिलाकर, खेल के प्रति उनका प्यार हमेशा कायम रहा, उनके लिए खेल एक जुनून बन गया.
गोला फेंक, डिस्कस थ्रो और भाला फेंक में नेशनल मेडल जीतने से लेकर पावरलिफ्टिंग कॉम्पिटिशन में गोल्ड और सिल्वर जीतने तक एथलेटिक्स में सुवर्णा का सफर अद्भुत है.
फिर उनकी जिंदगी में एक और सुखद सरप्राइज आया. उनकी शादी पैरा-एथलीट प्रदीप से हुई. वे दोनों एक स्पोर्ट्स इवेंट में मिले और प्यार हो गया.
जब सुवर्णा मां बनीं, तो उन्होंने अपने एक्टिव करियर से एक छोटा-सा ब्रेक ले लिया. वह कुछ साल बाद लौटीं, इस बार एक टेनिस खिलाड़ी के रूप में. 41 वर्षीय सुवर्णा ने 2014 में पैरा एशियाई खेलों और 2022 में चीन में हांग्जो पैरा एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है.
सुवर्णा एक्सेस ऑडिटर और एक्सेसिबिलिटी कंसल्टेंट के रूप में फ्रीलांस भी करती हैं. वह कहती है,
जीवन आप पर कर्वबॉल फेंक सकता है, लेकिन उसे मैदान से बाहर मारना आप पर निर्भर है.
समर्थ, हुंडई द्वारा एनडीटीवी के साथ साझेदारी में शुरू हुई एक पहल है जिसका मकसद समावेशिता को बढ़ावा देना, नजरिए को बदलना और दिव्यांग लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता को सुधारना है.
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